शिवसेना के बाउंसर
बहस
शिवसेना के बाउंसर
राम पुनियानी
रूपहले पर्दे के हरदिल अजीज नायक शाहरूख ख़ान ने पिछले दिनों यह राय व्यक्त की कि
पाकिस्तानी खिलाड़ियों को आई़पीएल क्रिकेट लीग में खेलने दिया जाना चाहिए. इस मुद्दे
पर शिवसेना समर्थकों ने एक बड़ा बवाल खड़ा कर दिया. शाहरूख ख़ान के बयान की शिवसेना
ने कड़ी आलोचना की और शिवसेना के गुंड़ो ने उनकी फिल्म ‘माई नेम इज ख़ान’ के पोस्टर
फाड़ डाले. शिवसेना ने यह भी कहा कि अगर शाहरूख ख़ान का “ख़ान“ जाग उठा है तो बेहतर
होगा कि वे पाकिस्तान चले जाएं और वहीं रहें.
शिवसेना, इन दिनों “मुंबई केवल महाराष्ट्रियनों के लिए” मुद्दे पर हिंसक आंदोलन चला
रही है. भारत की राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल व क्रिकेट सितारे सचिन
तेंदुलकर उन लोगों में शामिल हैं, जिन्होंने साफ शब्दों में यह कहा है कि भारत का
हर शहर और गाँव, प्रत्येक भारतीय का है. ज्ञातव्य है कि श्रीमती पाटिल व तेंदुलकर
दोनों महाराष्ट्रियन हैं.
मुंबई इन दिनों क्षेत्रवाद और सांप्रदायिकता के चंगुल में है. इस में काई संदेह
नहीं कि भारत और पाकिस्तान के आपसी रिश्तों में शुरू से ही कड़वाहट घुली रही हैं.
दोनों पड़ोसियों के बीच तीन युद्ध हो चुके हैं. जिन लोगों के रिश्तेदार सीमा के उस
पार रहते हैं, वे दोनों देशों के बीच बैर का परिणाम भोग रहे हैं. रिश्तों में
कड़वाहट के कई कारण हैं, जिनमें आतंकवाद प्रमुख है.
अगर हमें आतंकवाद को जड़ से मिटाना है तो हमें उसे गहराई से समझना होगा. आतंकवाद की
जड़े तेल की राजनीति में हैं. अमरीका ने पाकिस्तान की भूमि पर मदरसों की स्थापना
करवाई, जिनमें अल् कायदा के आतंकवादियों को प्रशिक्षण दिया गया.
1970 के दशक के उत्तरार्ध में, अमरीका का उद्देश्य अफगानिस्तान से सोवियत सेनाओं को
खदेड़ना था. इस्लाम के तोड़े-मरोड़े गए संस्करण का इस्तेमाल, अल् कायदा के लड़ाकों के
दिमागों में जहर भरने के लिए किया गया. ओसामा बिन लादेन भी अमरीकी उत्पाद है. उसे
सोवियत सेना से मुकाबला करने के लिए करोड़ों डालर और टनों हथियार अमरीका ने ही
उपलब्ध कराए थे.
रूसी सेनाओं की हार के बाद अल् कायदा ने इलाके के अन्य देशों को निशाना बनाना शुरू
कर दिया. उसने पूरे क्षेत्र में खून की नदियां बहाईं. इस्लाम के नाम का बेजा
इस्तेमाल करने वाला यह संगठन भस्मासुर साबित हुआ है और इस समय उसके निशाने पर
मुख्यतः पाकिस्तान है.
हमें यह
नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाने से वहां की नागरिक
सरकार मजबूत होगी और उसे आतंकवाद से लड़ने की ताकत मिलेगी. |
आतंकवादियों के अड्ड़े भले ही पाकिस्तान में हों परंतु ना तो पाकिस्तान की सरकार, न
वहां की जनता और ना ही वहां का प्रजातंत्र-समर्थक तबका, आतंकवाद के कैंसर को पोषित
कर रहा है. पाकिस्तान की एक पूर्व प्रधानमंत्री आतंकवाद की शिकार हो चुकी हैं और
वहां आतंकी हमले हर दूसरे-चौथे दिन होते रहते हैं. पाकिस्तान की सरकार, आतंकवाद से
निपटने की भरसक कोशिश कर रहीं है परंतु वहां का मुल्ला-मिलिट्री गठजोड़ आतंकियों का
साथ दे रहा है.
आतंकवाद की निंदा करने में कुछ भी गलत नहीं है और न ही पाकिस्तान की नागरिक सरकार
से यह मांग करना अनुचित है कि वो आतंकवाद को नियंत्रित करे परंतु हमें यह नहीं
भूलना चाहिए कि पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाने से वहां की नागरिक सरकार
मजबूत होगी और उसे आतंकवाद से लड़ने की ताकत मिलेगी.
संगीत, खेल, व्यापार और शिक्षा ऐसे कुछ क्षेत्र हैं, जिनके जरिए हम पाकिस्तान के
साथ शांति के रिश्ते बना सकते हैं. एक-दूसरे के प्रति घृणा फैलाने से दोनों
पड़ोसियों का नुकसान होगा.
आतंकवाद के खिलाफ गुस्सा स्वभाविक है परंतु हमें जोश में होश नहीं खोना चाहिए. इस
क्षेत्र में जब तक शांति स्थापित नहीं होगी तब तक दोनों ही देशों का समुचित विकास
नहीं हो सकेगा. शिवसेना का शाहरूख ख़ान को पाकिस्तान जाने के लिए कहना, भारतीय
संविधान के मूल्यों के विरूद्ध है और उस राष्ट्रीय आंदोलन की आत्मा का हनन है,
जिसने इस देश की स्थापना की है.
क्षेत्रीय राजनीति के इस भद्दे, विघटनकारी चरित्र का पुरजोर विरोध किया जाना चाहिए.
हमारे देश में नागरिकता का धर्म से कोई लेना देना नहीं है. सभी धर्मो के लोग इस देश
के बराबरी के नागरिक हैं. किसी नागरिक की देशभक्ति पर केवल उसके धर्म के आधार पर
संदेह करना, भारतीय संविधान का अपमान है.
यह सही है कि मुंबई जैसे महानगर बढ़ती आबादी का दबाव एक सीमा तक ही सहन कर सकते हैं
परंतु हमें यह भी सोचना चाहिए कि आखिर क्या कारण है कि बाहर से इतने लोग रोज मुंबई
आ रहे है.
देश का असमान विकास इसके पीछे है. शिवसेना की गुंड़ागर्दी और उसकी राष्ट्रविरोधी
गतिविधियों पर कड़ाई से रोक लगाई जानी चाहिए परंतु साथ ही हमें यह प्रयास भी करना
चाहिए कि देश का विकास इस ढ़ंग से हो कि लाखों लोगों को केवल अपना पेट भरने के लिए
मुंबई जैसे महानगरो मे न आना पड़े. समस्या के स्थायी निराकरण का केवल यही एक तरीका
है.
शिवसेना और उसका टूटा हुआ टुकड़ा, “महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना” दोनों ही संकीर्ण,
क्षेत्रीय भावनाएं भड़का कर जिंदा हैं. ये क्षेत्रीय ताकतें, राष्ट्रीय एकता के लिए
खतरा हैं. धर्म या क्षेत्र के आधार पर हम अपने नागरिकों के साथ भेदभाव नहीं कर
सकते. पाकिस्तान के खिलाफ घृणा फैलाना अदूरदर्शी नीति है और यह लोगों को भावनाओं
में बहा कर आतंकवाद के असली कारणों से उनका ध्यान हटाने का षड़यंत्र है.
आतंकवाद के लिए अमरीका की नीतियां जिम्मेदार हैं. अमरीका, पाकिस्तान को अपने अड्डे
और साथी की तरह इस्तेमाल कर, कच्चे तेल के संसाधनों पर कब्जा जमाना चाहता है. हमें अपने सभी नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा करनी होगी. इसके लिये
क्षेत्रीय और सांप्रदायिक ताकतों पर कड़ा शिकंजा कसना अतिआवश्यक है.
06.02.2010, 01.13 (GMT+05:30) पर
प्रकाशित