सौमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग पारित
सौमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग पारित
नई दिल्ली. 18 अगस्त 2011
भारतीय संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा ने कोलकाता हाईकोर्ट के जज सौमित्र सेन के
ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव पारित कर दिया है. भारत के इतिहास में पहली बार किसी जज
के ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव पारित हुआ है.
माकपा के सीताराम येचुरी ने अभियोजक की भूमिका निभाते हुए महाभियोग प्रस्ताव पेश
किया जिसमें राष्ट्रपति से आग्रह किया गया कि वह धन की हेराफेरी तथा तथ्यों को गलत
तरीके से पेश करने के आरोपों में सेन को न्यायाधीश के पद से हटा दें. सेन को बोलने
का मौका मिला तो उन्होंने बड़े आत्मविश्वास के साथ अपनी दलीलें रखी और हर बात का
बिन्दुवार जवाब दिया. बाद में राज्यसभा में इस प्रस्ताव के पक्ष में 172 और विरोध
में मात्र 16 मत पड़े. जब सेन से दिल्ली से वापसी के बाद इस मामले में पूछा गया तो
उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया में कहा, मैं अत्यधिक निराश हूं.
सौमित्र सेन पर वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगे हैं. आर्थिक अनियमितता का मामला
करीब एक दशक पुराना है, जब न्यायाधीश सेन कलकत्ता हाईकोर्ट में वकालत करते थे. तब
उन्हें एक मामले में कोर्ट ने रिसीवर नियुक्त किया था. उसी दौरान उन पर कोर्ट के
खाते में रखा जाने वाला धन व्यक्तिगत खाते में रखने का आरोप लगा. यह आरोप बाद में
सही साबित हुआ.
राज्यसभा ने इस सिलसिले मिले महाभियोग के नोटिस के बाद तीन सदस्यीय न्यायिक समिति
गठित करके मामले की जांच कराई. उसमें भी आरोप को सही पाया गया. इसी के बाद राज्यसभा
की ओर से न्यायाधीश सेन को नोटिस जारी किया गया था कि क्यों न उनके खिलाफ महाभियोग
की प्रक्रिया चलाई जाए. राज्यसभा के सभापति को दिये गए महाभियोग संबंधी प्रस्ताव पर
कुल 58 सांसदों के हस्ताक्षर थे. सेन ने राज्यसभा को जवाब देते हुये कहा कि संसद को
रिसीवर की भूमिका पर बहस करने का अधिकार नहीं है, इसलिये यह नोटिस ही गलत है. मामला
सुप्रीम कोर्ट में गया और वहां से भी उनको राहत नहीं मिली. सुप्रीम कोर्ट ने उनके
ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव लाये जाने को हरी झंडी दे दी थी.
भारत के इतिहास में पहली राज्यसभा में किसी जज के ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव पारित
हुआ है. इससे पहले वर्ष 1993 में सुप्रीम कोर्ट के जज वी रामास्वामी के ख़िलाफ़
लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव आया था. तब उनकी वकालत आज के मंत्री कपिल सिब्बल ने
की थी और कांग्रेसी सांसद वोटिंग से पहले सदन से निकल गये थे, इस कारण भ्रष्टाचार
के आरोपो से घिरे वी रामास्वामी को हटाया नहीं जा सका था.