विनायक सेन को पुरुस्कार का आदिवासियों ने किया विरोध
विनायक सेन को पुरुस्कार का आदिवासियों ने किया विरोध
नई दिल्ली. 19 अक्टूबर 2011
मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल के उपाध्यक्ष डॉक्टर विनायक सेन को गांधी फाउंडेशन लंदन
का अंतर्राष्ट्रीय शांति पुरुस्कार दिये जाने का विभिन्न आदिवासी संगठनों ने कड़ा
विरोध किया है. विभिन्न आदिवासी नेताओं ने कहा है कि विनायक सेन भारत के आदिवासियों
का प्रतिनिधित्व नहीं करते और यह पुरुस्कार उन्हें यही कहते हुये दिया जा रहा है कि
वे ‘भारत के आदिवासी लोग’ हैं. इस विरोध के बाद विनायक सेन ने भी माना है कि वे
भारत के आदिवासियों का प्रतिनिधित्व नहीं करते और पुरुस्कार के लिये की गई घोषणा के
शब्द बदले जाने चाहिये.
ज्ञात रहे कि विनायक सेन और बुलु इमाम को संयुक्त रुप से 9 नवंबर को लंदन के
एमनेस्टी इंटरनेशनल में दिये जाने की घोषणा की गई है.
झारखण्ड ह्यूमन राइट्स मूवमेंट और झारखण्ड इन्डिजनस पीपुल्स फोरम ने शनिवार को
गांधी फाउंडेशन के अध्यक्ष रिचर्ड एटनबरो को पत्र लिख कर इस बात को लेकर विरोध
जताया है कि विनायक सेन जैसे गैर आदिवासी को जनजातियों का पुरस्कार दिया जा रहा है.
संगठन ने गांधी फाउंडेशन से अनुरोध किया है कि या तो वे पुरस्कार का नाम बदलें या
फिर अगर यह पुरस्कार आदिवासियों को दिया जाना है तो इसे किसी आदिवासी प्रतिनिधि को
ही दिया जाये, जिसने आदिवासियों के मुद्दे पर संघर्ष किया हो.
पत्र में कहा गया है कि यह गहरी पीड़ा का विषय है कि डॉक्टर विनायक सेन और बुलु
इमाम को आदिवासियों के नाम पर यह अवार्ड दिया जा रहा है. इनके प्रति गहरे सम्मान का
भाव होने पर भी हमें यह मंजूर नहीं होगा कि आदिवासियों के नाम पर इन्हें यह अवार्ड
दिया जाये. यह विडंबनापूर्ण है कि गांधी फाउंडेशन का यह अवार्ड आदिवासी को दिया
जाना है लेकिन अनार्ड पाने वाले आदिवासी नहीं हैं. हम मानते हैं कि यह साफ तौर पर
अनादर, अपमान और संस्कृति, पहचान, अस्मिता, लोकाचार व गरिमा पर सीधा आक्रमण का
मामला है. यह मामला इस बात का भी प्रमाण है कि आदिवासी आज भी उपेक्षित हैं.
दोनों संगठनों ने डॉक्टर विनायक सेन और बुलु इमाम को भी इस आशय का पत्र लिखा है.
आदिवासियों के गहरे विरोध के बाद डॉक्टर विनायक सेन और उनकी पत्नी इलिना सेन ने एक
पत्र लिख कर यह स्पष्ट किया है कि उनकी ओर से कभी यह दावा नहीं किया गया है कि वे
आदिवासियों का प्रतिनिधित्व करते हैं.
बुलु इमाम और डॉक्टर विनायक सेन के नाम को इस अवार्ड के लिये द्वितीयक प्रस्तावक की
भूमिका निभाने वाले पत्रकार रॉबर्ट वेल्स ने कहा है कि अब जबकि दोनों का नाम
सार्वजनिक किया जा चुका है, तब विजेताओं को बदलना मुश्किल है. ऐसे में ‘भारत की
जनजाति के प्रतिनिधि को पुरस्कार’ दिये जाने की अपनी घोषणा बदलने पर फाउंडेशन विचार
कर रहा है. रॉबर्ट ने माना कि उन्होंने बुलु इमाम के साथ तो बजाप्ता काम किया है
लेकिन वे व्यक्तिगत रुप से डॉक्टर विनायक सेन को नहीं जानते. गांधी फाउंडेशन ने भी
दोनों के काम की प्रकृति को देखते हुये उन्हें आदिवासियों की ओर से इस अवार्ड के
लिये चुन लिया.