नटवर ने बदला मनमोहन का मन- कोंडोलीजा राइस
नटवर ने बदला मनमोहन का मन- कोंडोलीजा राइस
नई दिल्ली. 27 अक्टूबर 2011
अमरीकी विदेश मंत्री कोंडोलीजा राइस ने दावा किया है कि परमाणु संधि के मुद्दे पर भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री नटवर सिंह ने मनमोहन सिंह का मन बदला था. कोंडोलीजा राइस के इस दावे के बाद मनमोहन सिंह सरकार ने चुप्पी साध ली है. दूसरी ओर नटवर सिंह इस मुद्दे पर कुछ भी कहने से बच रहे हैं. उनका कहना है कि कोंडोलीजा जो कुछ कह रही हैं, उसके जवाब के लिये नटवर सिंह की किताब की प्रतीक्षा की जानी चाहिये.
कोंडोलीजा राइस की आने
वाली किताब 'नो हायर हॉनर' में कहा गया है कि भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री विदेश
मंत्री नटवर सिंह परमाणु संधि को लेकर कहीं ज़्यादा उत्साहित थे और उन्होंने अमरीकी
अधिकारियों के साथ मिल कर मनमोहन सिंह का मन बदलने का काम किया था.
राइस ने अपनी किताब में लिखा है, “नटवर सिंह अडिग थे. वो संधि चाहते थे. लेकिन
प्रधानमंत्री आश्वस्त नहीं थे कि वो भारत में संधि पर कैसे जनमत तैयार करेंगे.
आखिरकार नटवर ने कहा कि वो दस्तावेज़ को लेकर प्रधानमंत्री के पास जाएँगे और फिर
बताएँगे.” लेकिन मनमोहन सिंह तैयार नहीं हुये.
जब कोंडोलीजा राइस अपने देश के राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश से मिलने पहुँचीं तो
बुश ने कहा, “बहुत बुरा.”
अगले दिन राइस ने एक और कोशिश करने की लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मिलने से
ही इंकार कर दिया. कोंडोलीजा राइस ने नटवर सिंह को तैयार किया और फिर मनमोहन सिंह
से मुलाकात संभव हो सकी.
किताब के अनुसार इस बैठक में राइस ने मनमोहन सिंह से कहा, “प्रधानमंत्री जी, ये एक
महत्वपूर्ण संधि है. आप और हमारे राष्ट्रपति जॉर्ज बुश भारत-अमरीका रिश्तों को नए
स्तर पर ले जाने वाले हैं. मुझे पता है कि ये आपके लिए मुश्किल है, लेकिन ये
राष्ट्रपति बुश के लिए भी मुश्किल है. मैं यहाँ मोलभाव के लिए नहीं आई, बल्कि ये
कहने आई हूँ कि आप अपने अधिकारियों से कहें कि राष्ट्रपति बुश से मिलने से पहले काम
पूरा करें.”
इसके बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह परमाणु संधि पर हस्ताक्षर के लिये तैयार हो गये.
राइस का कहना था कि मनमोहन सिंह परमाणु संधि के मुद्दे पर इस बात से ज्यादा परेशान
थे कि वे भारत में इसके पक्ष में जनमत कैसे बनाएंगे. उन्हें खास तौर पर वामपंथी
दलों की चिंता थी, जो तब की सरकार को समर्थन कर रहे थे.
कोंडोलीजा राइस ने लिखा है- “मनमोहन सिंह के साथ जब संधि पर सहमति बन गई तो फिर तो
वो सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार हो गये. यहां तक कि सरकार भी.”