नोबल विजेता हरगोविंद खुराना का निधन
नोबल विजेता हरगोविंद खुराना का निधन
नई दिल्ली. 12 नवंबर 2011
डीएनए यानी जीन इंजीनियरिंग की बुनियाद रखने वाले नोबल पुरस्कार प्राप्त भारतीय मूल
के वैज्ञानिक डॉ हरगोविंद खुराना का मेनचेस्टर में निधन हो गया. वे 89 साल के थे और 1960 से ही अमरीका में ही रहते थे.
अविभाजित भारत के मुल्तान के रायपुर कस्बे में 9 जनवरी 1922 को जन्मे खुराना ने
पंजाब विश्वविद्यालय से सन् 1943 में बी एससी आनर्स और 1945 में एम एससी ऑनर्स करने
के बाद भारत सरकार से छात्रवृत्ति पाकर इंग्लैंड चले गये. इंग्लैंड के लिवरपूल
विश्वविद्यालय में प्रोफेसर ए. रॉबर्टसन् के निदेशन में इन्होंने पीएच डी की उपाधि
ली. बाद में डाक्टर खुराना जूरिख के फेडरल इंस्टिटयूट ऑफ टेक्नॉलोजी में प्रोफेसर
वी. प्रेलॉग के साथ शोध का काम किया.
इसके बाद डाक्टर खुराना भारत लौटे, जहां इन्हें कोई ठीक-ठाक काम नहीं मिला और अंततः
वे इंग्लैंड लौट गये. बाद में इन्होंने कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया अनुसंधान संस्थान
में अपनी सेवाएं दीं.
1960 में डाक्टर खुराना ने विस्कान्सिन विश्वविद्यालय के
इंस्टिट्यूट ऑव एन्ज़ाइम रिसर्च में अपनी सेवाएं दीं. जीन इंजीनियरिंग अर्थात बायो
टेक्नोलॉजी की बुनियाद रखने में डाक्टर खुराना ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की.
जेनेटिक कोड की भाषा समझने और उसकी प्रोटीन संश्लेषण में भूमिका बताने के लिए 1968
में चिकित्सा विज्ञान का नोबल पुरस्कार उन्हें प्रदान किया गया. इसके बाद इन्होंने
अमरीका की नागरिकता ले ली.
विस्कान्सिन विश्वविद्यालय में डाक्टर खुराना ने निदेशक पद पर भी काम किया.