भारत में दवा विरोधी टीबी ने उड़ाई डाक्टरों की नींद
भारत में दवा विरोधी टीबी ने उड़ाई डाक्टरों की नींद
मुंबई. 18 जनवरी 2012
मुंबई के डाक्टरों को टीबी यानी तपेदिक की एक ऐसी श्रेणी का पता चला है, जिसने उनकी
नींद उड़ा दी है. पिछले कुछ दिनों में तपेदिक के ऐसे 12 रोगी सामने आये हैं, जिनकी
जांच से पता चला कि उनको दी जाने वाली एंटीबायोटिक बेअसर हो रही हैं. इस खबर के बाद
स्वास्थ्य मंत्रालय की एक टीम ने विशेष जांच शुरु की है. आरंभिक जांच में पता चला
है कि इसी तरह के मामले इटली, रुस, चीन और ईरान में भी मिले हैं.
अभी तक यह मान्यता है कि टीबी के मरीजों को छह से नौ महीने तक अगर ठीक से दवा दी
जाये तो उनका रोग ठीक हो जाता है. भारत में इसके लिये डाट्स पद्धति भी अपनाई गई है.
शुरुआती तौर पर मरीज को दो माह तक आइसोनियाज़िड, रिफाम्पिसिन, एथेमब्युटोल और
पायराज़ीनामाईड दवाई दी जाती है. इसके बाद एथेमब्युटोल और पायराज़ीनामाईड दवा बंद
कर दी जाती है और अगले चार महीने तक दूसरी दवाओं का सेवन मरीज करता रहता है. इसके
बाद भी अगर टीबी के रोगाणुयों के जिंदा रहने की आशंका होती है तो मरीजों को नौ
महीने तक आइसोनियाज़िड का सेवन कराया जाता है.
अब जिस नए प्रकार के टीबी का पता चला है, उसके मरीजों पर ये दवाइयां बेअसर हो रही
हैं. मुंबई के हिंदुजा अस्पताल के डॉक्टरों ने पिछले 2 सालों में ऐसे 12 मरीजों की
पहचान की, जिन्हें लगातार दवाइयां देने के बाद भी उनके स्वास्थ्य में कोई परिवर्तन
नहीं आया.
हालांकि इससे पहले भी दुनिया भर में बड़ी संख्या में टीबी के ऐसे मरीज पाये गये
हैं, जिनकी तपेदिक दवा विरोधी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो अकेले यूरोप
में हर साल दवा प्रतिरोधी टीबी के 81000 मामले सामने आते हैं. लेकिन भारत जैसे देश
में टीबी के नये प्रकार ने स्वास्थ्य विभाग की चिंताएं बढ़ा दी हैं. भारत में लगभग
19.75 लाख टीबी के मरीज हैं, जिनकी पहचान की गई है. हर साल ऐसे मरीजों की संख्या
में 18 लाख का इजाफा होता है यानी एक ओर मरीज ठीक होते हैं और दूसरी ओर उतने ही नये
मरीज सामने आ जाते हैं. हर साल लगभग 65 हजार लोग इस बीमारी के कारण मौत के मुंह में
समा जाते हैं. टीबी के 3.31 लाख मरीज तो अकेले उत्तर प्रदेश में हैं.