छत्तीसगढ़ में जज अब भी माईलार्ड
छत्तीसगढ़ में जज अब भी माईलार्ड
बिलासपुर. 19 अप्रैल 2011
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में जजों को ‘सर’ या ‘श्रीमान’ कहने के फैसले पर अमल नहीं हो
सका. सोमवार को अदालत का कामकाज शुरु हुआ तो उम्मीद की जा रही थी कि अदालत में
माईलार्ड की जगह नया संबोधन सुनने को मिलेगा. लेकिन अदालत में वकीलों ने जजों को सर
या श्रीमान कहने से परहेज किया और एक भी वकील ने नये संबोधन का उपयोग नहीं किया.
गौरतलब है कि हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने रविवार को एक बैठक करके जजों को भविष्य में
‘सर’ या ‘श्रीमान’ कहकर संबोधित करने का फैसला लिया था. बैठक में कहा गया था कि
आज़ादी के बाद भी माईलार्ड के संबोधन करना दासता का प्रतीक है और अब भविष्य में
वकील इस संबोधन का इस्तेमाल नहीं करेंगे. लेकिन सोमवार को जब अदालत का कामकाज शुरु
हुआ तो इस फैसले पर अमल नहीं हो सका.
अंग्रेजों के जमाने से जजों को माई लार्ड कहे जाने को लेकर समय-समय पर विवाद होता
रहा है. इस मुद्दे पर अप्रैल 2006 में बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने निर्देश दिया था कि
जजों को माई लार्ड के स्थान पर सर कहा जा सकता है लेकिन कई जजों के हस्तक्षेप के
बाद भी पंजाब-हरियाणा और केरल के अलावा इस पर अमल नहीं हो सका. रविवार को छत्तीसगढ़
बार एसोसिएशन ने जब इस मुद्दे पर फैसला लिया था तो उम्मीद की जा रही थी कि माईलार्ड
शब्द की विदाई करने वालों में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट भी शामिल हो जायेगा, लेकिन ऐसा
नहीं हो सका.
इधर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के इस फैसले के खिलाफ एसोसिएशन के ही अधिकारी खड़े हो
गये हैं. सोमवार की रात एसोसिएशन से जुड़े कुछ वकीलों ने एक बैठक कर बार एसोसिएशन
के इस फैसले को चुनौती दी है. बैठक में एसोसिएशन के फैसले पर कड़ी आपत्ति की गई.
एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष गौतम खेत्रपाल ने कहा कि इस तरह के फैसले को लेने का काम
बार का नहीं है. खेत्रपाल के अनुसार यह नीतिगत फैसला है और इस पर कोई भी फैसला
समान्य सभा में ही किया जाना चाहिये.