नदी को सोचने दो
पुस्तक अंश
नदी को सोचने दो:
रश्मि शर्मा
कविता संग्रह
प्रकाशक: बोधि प्रकाशन, एफ-77, सेक्टर-9, रोड नंबर-11, करतारपुरा इंडस्ट्रियल एरिया, बाईस गोदाम, जयपुर 302006
मूल्य: 120 रुपये.
ये पुनर्जन्म है
प्यार ने सिखाया मुझको बोलना
भर आई आंखों से आंसुओं को
ढलकाना
और उसके बाद खुश होकर नाचना
सुबह की आंख से गिरा
शबनम
प्यार का मोती बन जगमगा उठा
ये पुनर्जन्म है
तुमसे मिलना
जबकि
पहले भी स्लेटी आसमान
और
कलकल झरने खींचते थे
मुझे
मगर जीवन बसंत में
इतने फूल नहीं खिलते थे
अब जिंदगी के
होठों पर
एक खूबसूरत धुन है
और
रात के सन्नाटों में
एकांत का संगीत है
शाम बन ढल जाती है
आज फिर
शाम को
ठिठुरता सूरज
पहाड़ों की गोद में
छुप गया
जैसे तुम्हारा ख्याल
आता है और
मन के किसी कोने में
छुप जाता है
रात के साए में
मेरी पलकें
बरबस बंद होती हैं
और तुम्हारी याद
आधी रात को
टूटे ख्वाब-सी आती है
शाम की ठिठुरन
रात का सन्नाटा
और इंतजार का उजाला
जाने कौन
मेरे आंचल में
भर जाता है
ये सर्दियों की लंबी रातें
ठंड के साथ
यादों के लिहाफ़ भी
ओढ़ा जाती है
फिर एक सुबह
शाम बन ढल जाती है.
17.12.2015, 16.05 (GMT+05:30) पर प्रकाशित