बेहतर हो शिक्षा व्यवस्था
विचार
कॉर्पोरेट और किसान
में फर्क
देविंदर
शर्मा
पंजाब के बठिंडा में एक किसान को एक साल की जेल की सजा सुनाई गई और उस पर दो लाख
रुपये का जुर्माना भी किया गया. उसकी गलती बस यह थी कि वह बैंक से लिया दो लाख
रुपये का कर्ज नहीं लौटा सका था. कुछ हफ्ते पहले हरियाणा के एक किसान को
डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने दो साल कैद की सजा सुनाई और उसे 9.80 लाख रुपये जमा करने के
आदेश दिए. उसने सिंचाई के लिए पाइप लाइन बिछाने के लिए छह लाख रुपये का कर्ज लिया
था..
सीबीआई ने जब रोटोमेक के मालिक विक्रम कोठारी को 3,695 करोड़ रुपये के कर्ज का
भुगतान न करने से संबंधित मामले में गिरफ्तार किया था, तब मैं सोच रहा था कि क्या
अदालत उन्हें सजा सुनाए जाने के साथ ही उन पर इस राशि के बराबर जुर्माना करेगी.
दरअसल विभिन्न तबके के लोगों के लिए व्यवस्थाएं अलग अलग हैं. एक और मामले को देखिए.
हरियाणा के कैथल के 96 वर्षीय रामदिया के लिए हर महीने मिलने वाली 1,600 रुपये की
वृद्धावस्था पेंशन ही एकमात्र सामाजिक सुरक्षा थी. मगर इस उम्र में पिछले कुछ महीने
से उन्हें इससे वंचित कर दिया गया था.
2006 में उन्होंने पचास हजार रुपये का जो कर्ज लिया था, उसके भुगतान के लिए बैंक ने
निर्दयता पूर्वक उनकी सारी पेंशन ही ले ली, जोकि उसी बैंक के जरिये उन्हें मिलती
थी. वृद्धावस्था पेंशन के सिर्फ वही ऐसे लाभार्थी नहीं है, जिन्हें उनकी इस
जीवनरेखा से काटकर अलग कर दिया गया.
यह बैंकिंग के कायदों के विपरीत है. मगर गरीब और वंचित तबके के लोगों के साथ
बैंकिंग व्यवस्था इसी बेरहमी से पेश आ रही है. दूसरी ओर बैंकों ने धनी दिवालिया
लोगों के लिए अलग नियम बना रखे हैं. उनके साथ नरमी से पेश आया जाता है और यहां तक
कि रिजर्व बैंक ने भी उनके द्वारा लिए गए कर्ज को जायज ठहराया है, जोकि अब फंसा
कर्ज बन चुका है.
खबरों के मुताबिक 30 सितंबर, 2017 को अपनी मर्जी से दिवालिया होने वाले 9,339 लोग
थे, जिन्होंने बैंकों के कुल 1.1 लाख करोड़ रुपये के कर्ज लौटाने से इन्कार कर दिया
था. जानबूझकर दिवालिया होने वाले ऐसे लोग या कंपनियां क्षमता होने के बावजूद कर्ज
का भुगतान नहीं करना चाहते. इसलिए क्योंकि वे जानते हैं कि पूरी बैंकिंग व्यवस्था
और आर्थिक नीतियां उन्हें सुरक्षा की एक छतरी प्रदान करती हैं.
विगत चार वर्षो में कॉरपोरेट कर्ज बहुत तेजी से डूबा है. 2013 में खराब कर्ज की
राशि 28,417 करोड़ रुपये थी, जो कि बढ़कर सितंबर, 2017 में 1.1 लाख करोड़ रुपये हो
गई. ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि बैंकों के दो नियम हैं, एक कॉरपोरेट के लिए दूसरा
किसानों के लिए. बैंक अक्सर कर्ज न चुकाने वाले किसानों के नाम और फोटो तहसील
कार्यालय में चस्पा कर देते हैं, लेकिन मैंने बैंकों को कभी कॉरपोरेट दिवालिया
लोगों के नाम इस तरह उजागर करते नहीं देखा.
वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक कई बार सर्वोच्च न्यायालय से जानबूझकर दिवालिया होने
वाले लोगों के नाम उजागर न करने का आग्रह कर चुके हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि
इससे निवेशकों में गलत संदेश जाएगा.
यदि जानबूझकर दिवालिया होने वाले 9,339 लोगों के नाम और तस्वीरें बैंकों की शाखाओं
में और सीआईआई, फिक्की और एसोचैम जैसे औद्योगिक संगठनों के सूचना पट्टों पर चस्पा
कर दिए जाते, तो मुझे पक्का यकीन है कि इससे वे शर्मिंदा होते और यह कदम कवच का काम
करता. लेकिन ऐसे लोगों को मिल रही सुविधाएं और रियायतों के कारण फंसा कर्ज (एनपीए)
बढ़ता जा रहा है और उन्हें किसी तरह का पश्चाताप भी नहीं है, जो यह दिखाता है कि
किस तरह से बैंकिंग का पूरा ढांचा केवल अमीरों और ताकतवर लोगों की सेवा कर रहा है.
नीरव मोदी और उनके सहयोगियों ने पंजाब नेशनल बैंक से 11,400 करोड़ रुपये (अब यह
राशि और बढ़ गई है) हड़प लिए और गिरफ्तारी से बचने के लिए भागकर सुरक्षित पनाहगाहों
में पहुंच गए हैं, तो यह दिखाता है कि बैंकिंग नियामक का भय सिर्फ आम आदमी के लिए
है. किसानों से बकाए की वसूली के लिए हर तरह के अमानवीय हथकंडे अपनाए जाते हैं,
लेकिन उन्हीं बैंकों द्वारा कॉरपोरेट कर्जदारों के प्रति बहुत उदार रवैया अपनाया
जाता है.
बैंक, नॉन बैंकिंग वित्तीय संस्थाएं और माइक्रो फाइनेंस इंस्टीट्यूट (एमएफआई)
किसानों से कर्ज की वसूली के लिए उन्हें शारीरिक नुकसान तक पहुंचाने से गुरेज नहीं
करते. हाल ही में सीतापुर में एक किसान जिसने एक गैर बैंकिंग वित्त संस्था से 90
हजार रुपये का कर्ज ले रखा था, की ट्रैक्टर से दबकर तब मौत हो गई, जब वसूली करने
वाले एजेंट ने उसके साथ छीनाझपटी की.
वित्त मंत्रालय से मिले संरक्षण के कारण फंसा कर्ज 9.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच
गया है. जबकि दूसरी ओर सितंबर, 2016 तक किसानों का कुल 12.6 लाख करोड़ रुपये का
कर्ज बकाया था. किसानों ने जब बकाए कर्ज माफ करने की मांग की, तो मुख्यधारा के
अर्थशास्त्रियों और नीति नियंताओं ने इसे नैतिक जोखिम करार दिया और कहा कि इससे
बैलेंस शीट बिगड़ जाएगी.
दूसरी ओर कॉरपोरेट के बुरे कर्ज की माफी को, जैसा कि मुख्य आर्थिक सलाहकार ने एक
बार कहा था, आर्थिक विकास की तरह देखा जाता है. यहां तक कि आर्थिक नीतियां भी
जानबूझकर दिवालिया होने वालों को बच निकलने का सुरक्षित गलियारा प्रदान करती हैं.
वे जानते हैं कि उनके खराब कर्ज आर्थिक विकास की प्रक्रिया में माफ कर दिए जाएंगे.
संसद की लोक लेखा समिति ने अनुमान लगाया था कि मार्च, 2017 तक सार्वजनिक क्षेत्र के
बैंकों का कुल 6.8 लाख करोड़ रुपये का कर्ज बकाया है. इसमें से 70 फीसदी कॉरपोरेट
जगत का था और सिर्फ एक फीसदी कर्ज किसानों से संबंधित था.
बैंकों ने पिछले एक दशक में 3.6 लाख करोड़ रुपये का खराब कर्ज माफ किया है. लेकिन
मैं आज तक नहीं समझ सका हूं कि बकाए कर्ज की वसूली के लिए कॉरपोरेट प्रमुखों के साथ
वैसा ही व्यवहार क्यों नहीं किया जाता जैसा किसानों के साथ किया जाता है.
05.03.2018, (GMT+05:30) पर प्रकाशित