मध्यप्रदेश में किसानों की आत्महत्या
मुद्दा
मध्यप्रदेश में किसानों की
आत्महत्या
बाबा मायाराम,
होशंगाबाद से
पिछले साल बनखेड़ी तहसील के भैरोपुर गांव में रहने वाले युवा किसान मिथलेश रघुवंशी
ने जब अपने खेत में ट्यूबवेल लगवाया तो उन्हें उम्मीद थी कि पानी के साथ घर में
खुशहाली आएगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
पहले सोयाबीन की फसल बर्बाद हुई तो 6 एकड़ के किसान मिथलेश ने हौसला रखा और अपने
खेत में गेहूं कि फसल लगाई. लेकिन गेहूं की फसल ने भी दगा दे दिया. आखिरकार 22 साल
के मिथलेश ने सल्फास की गोली खा कर अपनी जान दे दी.
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कैसे कटेगी जिंदगीः
कुर्सीढाना में आत्महत्या करने वाले किसान अमान सिंह की
पत्नी और बेटे |
आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और विदर्भ के इलाकों से किसानों की आत्महत्या की खबरें लगातार
आती रही हैं लेकिन अब मध्यप्रदेश में भी किसान खेती की विफलता के कारण आत्महत्या कर
रहे हैं. राज्य में अब तक 8 किसानों की आत्महत्या की खबर आ चुकी है.
लोकसभा चुनाव के दौरान आरोप-प्रत्यारोप तो हो रहे हैं लेकिन इस पर गंभीरता से विचार
नहीं किया जा रहा है कि आखिर किसान जान क्यों दे रहे हैं ?
इसी महीने होशंगाबाद जिले के पूर्वी छोर पर स्थित बनखेड़ी तहसील में 1 से 3 अप्रैल
के बीच 3 किसानों ने आत्महत्या की कोशिश की, जिसमें दो किसानों की मौत हो गई.
आत्महत्या की कोशिश करने वाले तीनों युवा थे और छोटे व मध्यम श्रेणी के किसान थे.
बनखेड़ी तहसील के भैरोपुर गांव में 22 साल के मिथलेश रघुवंशी की खेत में केवल 21
क्विंटल उत्पादन हुआ था, जिससे वह निराश थे. अपनी मां के साथ रहने वाले मिथलेश ने
शादी नहीं की थी.
परिजनों के अनुसार मिथलेश ने अपने मृत्यु पूर्व बयान में गेहू का उत्पादन कम होना
और कर्ज की चिंता में जान देने की बात कही है. उसके परिजन बताते हैं कि किसान
क्रेडिट कार्ड बनवाने के लिए भी बार-बार चक्कर काटता रहा लेकिन अंततः उसे कामयाबी
नहीं मिली.
खेती के कारण आत्महत्या करने वालों में कुर्सीढाना के अमान सिंह का नाम भी शुमार
है. 40 साल के अमान सिंह लगभग 3 एकड़ 60 डिस्मिल जमीन पर खेती कर रहे थे और अपनी
गृहस्थी की गाड़ी चला रहे थे.
बताते हैं कि उन्होंने बैंक से लगभग 50 हज़ार रुपये का कर्ज ले रखा था. इस साल
उन्होंने अपनी छोटी बेटी सीता के हाथ पीले करने की योजना बनाई थी और उम्मीद की थी
कि फसल से थोड़ी अच्छी कमाई हो जाएगी. लेकिन गेंहूं का उत्पादन कम हुआ तो रही सही
हिम्मत जवाब दे गई और उन्होंने घर पर रखी कीटनाशक पी कर अपनी जान दे दी.
पास के ही कस्बे बनखेड़ी में पढ़ रहे उनके दोनों बेटे 9 साल के संदीप और 6 साल के
शिवम गर्मियों की छुट्टी में अपने घर आए थे. लेकिन अबकी छुट्टी उनके जीवन में एक ऐसा
सूनापन भर गई, जिसे कभी नहीं भरा जा सकेगा. अमान सिंह की पत्नी सुनीता बाई और दोनों
बेटियां लक्ष्मी व सीता के सामने अब पहाड़ जैसा जीवन है और खेती उनके सामने
प्रश्नवाचक चिन्ह की तरह खड़ा है.
नांदना ग्राम के 35 साल के प्रेमनारायण ने आत्महत्या की कोशिश की लेकिन किसी तरह
उन्हें बचा लिया गया. प्रेमनारायण की करीब 2 एकड़ जमीन है, जिसमें बमुश्किल 8
क्विंटल गेहूं निकल पाया. कटाई के लिए खेत पर गए किसान प्रेमनारायण ने अपनी फसल को
देखकर वहीं रखी कीटनाशक की जहरीली दवा पीकर जान देने की कोशिश की.
नांदना के सरपंच प्रणवीर पटेल व किसान नेता दयालाल कहते हैं- “ गेहूं की फसल का
उत्पादन बहुत कम हुआ है और बिजली बिल की सख्त वसूली की आशंका से किसान परेशान हैं.”
होशंगाबाद जिले की बनखेड़ी तहसील में बरसों पहले सिंचाई के लिए रिंग के कुओं का काफी
फैलाव हुआ था. अब कुओं में पानी नहीं है, भूजल का स्तर नीचे चला गया है. अब
ट्यूबवेल ही सिंचाई का साधन है. किसानों ने बड़ी संख्या में ट्यूबवेल खनन का काम
करवाया है.
एक अनुमान के अनुमान टयूबवेल खनन के लिए 10-15 मशीन यहां साल भर घूमती रहती हैं.
सिंचाई के साथ यहां फसल चक्र भी बदला. नकदी फसलों का चलन बढ़ा. सोयाबीन की कमाई से
किसानों के लड़के मोटर साईकिल दौड़ाने लगे. गन्ना बढ़ने लगा. लेकिन अन्तरराष्ट्रीय
बाजार में दाम कम-ज्यादा होने का झटका किसान नहीं सह पाते. फिर मौसम की मार और बिजली
का सवाल तो हमेशा सामने खड़ा रहता है.
इस वर्ष कम बारिश और सूखा की स्थिति थी. ऊपर से बिजली कटौती ने किसानों की परेशानी
और बढ़ा दी है और इलाके के किसान एक गहरे संकट के दौर से गुजर रहे हैं. एक ओर तो वे
बिजली कटौती के कारण फसलों में पर्याप्त पानी नहीं दे पाते, वहीं दूसरी ओर कम-ज्यादा
वोल्टेज के कारण सिंचाई के मोटर जलने से वे परेशान रहते है.
बढ़ती लागत, घटती उपज, खाद-बीज का गहराता संकट, बिजली-पानी की समस्या और उपज का
वाजिब मूल्य न मिलने से किसानों की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं. |
भैरोपुर के युवा किसान मिथलेश रघुवंशी के परिजनों ने बताया कि मिथिलेश के खेत में
लगे सिंचाई पंप का मोटर चार बार जल चुका था औऱ उसमें उसका काफी खर्च हो गया था.
कुर्सीढाना में तो चार-पांच बार ट्रांसफार्मर जलने की खबर है.
बिजली की वोल्टेज की समस्या के समाधान के रूप में निजी ट्रांसफार्मर का विकल्प पेश
किया जा रहा है, कुछ संपन्न किसानों ने लगाए भी हैं. लेकिन छोटे और मध्यम श्रेणी के
किसानों के वश में यह नहीं हैं. यह काफी खर्चीला है. कुल मिलाकर, इससे खेती में
लागत बढ़ती जा रही है. बिजली की स्थिति सुधरने के बजाए और खराब होते जा रही हैं.
मध्यप्रदेश में एशियाई विकास बैंक के कर्जे से चल रहे बिजली सुधारों की स्थिति सुधरी
तो नहीं है, बिगड़ ही रही है. अनाप-शनाप बिजली के बिल और कुर्की की घटनाएं सामने आ
रही हैं. ग्राम नांदना में ही एक किसान की मोटर साईकिल कुर्की वाले उठाकर ले गए जबकि
कर्ज किसी दूसरे किसान का था. किसानों पर ज्यादतियां बढ़ रही है.
बढ़ती लागत, घटती उपज, खाद-बीज का गहराता संकट, बिजली-पानी की समस्या और उपज का
वाजिब मूल्य न मिलने से किसानों की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं. किसान विरोधी नीतियां
और बेरहम बाजार के चक्रव्यूह में फंसे किसानों के पास अपनी जान देने के अलावा कोई
चारा नहीं बचा है. कर्ज माफी के वायदों के बावजूद किसान कर्ज के बोझ से दबे हुए
हैं. कर्ज वसूली, कुर्की की आशंका से परेशान हैं और आत्महत्या जैसे अतिवादी कदम
उठाने पर मजबूर है.
आत्महत्याएं तो कुछ किसानों ने ही की हैं लेकिन संकट में सब हैं.
15.04.2009,
18.09 (GMT+05:30) पर प्रकाशित