वेदांता की मौत की चिमनी
मुद्दा
वेदांता की मौत की चिमनी
आलोक प्रकाश पुतुल,
बालको नगर से
बालको में घरों को रौशन करने के लिए बनाई जा रही विशाल चिमनी ने ही सैकड़ों घरों को
हमेशा-हमेशा के लिए अंधेरे में डूबा दिया है. रोजी- रोटी के लिए झारखंड, बिहार और
उत्तर प्रदेश से आए मज़दूर छत्तीसगढ़ की औद्योगिक नगरी कोरबा से सटे बालको में बनाई
जा रही इस चिमनी के मलबे में दफन हो गए. अब वेदांता के बिजली संयंत्र और बालको नगर
में केवल चर्चा के दौर हैं. इस चर्चा में किस्से हैं, आंकड़े हैं, तर्क हैं, अफवाह
हैं, झूठ के कुतुबमीनार हैं और इन सब के साथ भयावहता है.
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तस्वीरः
अब्दुल असलम |
इस हादसे को दस दिन हो गए हैं. वेदांता के संयंत्र में मलबा निकालने का काम
करने वाली भीमकाय मशीनों का शोर थम चुका है. मलबे के हर ढेर को सांस रोक कर
देखने वाले लोग अब घटना स्थल पर नहीं हैं. क्षत-विक्षत लाशों को निकालने वाले
राहत दल के सदस्य अपने घरों को लौट चुके हैं. कथित रूप से ‘सील’ कर दिए गए पूरे
घटनास्थल के बाहर पुलिस के जवान उंघते, गप्प मारते और चाय पीते हुए अलसाई
दोपहरी में कुर्सियों पर पसरे हुए हैं.
सामने विशाल मलबे का ढेर है, छड़, मिट्टी, सीमेंट, रेत, कीचड़. वेदांता का दावा
है कि हमने चिमनी का फर्श देखने के बाद मलबा हटाने का काम बंद कर दिया क्योंकि
हमारी राय में इससे अधिक खुदाई की जरूरत नहीं है. मलबे से 41 मज़दूरों की लाशें
निकाली गई हैं और इसके अलावा 6 मजदूर घायल हुए हैं.
शाम के साथ आई मौत
छत्तीसगढ़ का कोरबा राज्य का पावर हब कहा जाता है. 2001 में कोरबा तब चर्चा में
आया जब एनआरआई उद्योगपति अनिल अग्रवाल की लंदन में रजिस्टर्ड कंपनी
वेदांता-स्टरलाइट ने 551 करोड़ रुपये में भारत सरकार के उपक्रम भारत
एल्युमीनियम कंपनी यानी बालको की 51 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी थी. तब से बालको पर
अनिल अग्रवाल की वेदांता का कब्जा है और वेदांता के साम्राज्य का विस्तार
लगातार जारी है.
फिलहाल वेदांता के इस साम्राज्य में 6-6 सौ मेगावाट के दो पावर प्लांट के लिए
चिमनी बन रही थी. इस चिमनी के आसपास काम करने वाले मज़दूर बताते हैं कि 23
सितंबर को रोज की तरह काम चल रहा था और दिन के शिफ्ट में काम करने वाले मज़दूर
कुतुब मीनार से कोई चार गुना उंची, 270 मीटर की इस चिमनी को पूरा करने के लिए
जुटे हुए थे. पिछले कुछ महीनों में इस चिमनी को 230 मीटर की उंचाई तक बनाया जा
चुका था.
कोई चार बजने को आए थे कि तेज हवाएं चलने लगीं और देखते ही देखते बारिश की
बौछार शुरु हो गई. वेदांता के ही दूसरे उपक्रमों में काम कर रहे मज़दूर आसपास
के कैंटिन, स्टोर रूम और ऐसे ही अस्थायी टिन शेडों में छुपने लगे. फिर इलाके की
बिजली गुल हो गई और इससे पहले कि मज़दूर कुछ समझ पाते, कथित रूप से भूकंपरोधी
230 मीटर उंची चिमनी हवा का दबाव नहीं सह पाई और धंसनी शुरू हो गई. पूरा ढांचा
धंसने और लहराने लगा और मिनटों में ही जमीन में धंसती हुई चिमनी अस्थाई टिन
शेडों में बनाए गए कैंटिन और कार्यालयों के ऊपर भरभरा कर गिर गई.
आसपास काम कर रहे मज़दूरों की मानें तो चिमनी के गिरते ही चारों तरफ कोहराम मच
गया. चीख-पुकार के बीच अंधेरे में लोगों ने अपने परिजनों को तलाशना शुरू कर
दिया. अपने तई लोगों ने चिमनी के मलबे में और टिन शैड में फंसे लोगों को
निकालने की सफल-असफल कोशिशें की. लेकिन जिन्हें यह सब कुछ करना चाहिए था, वे
माजरा समझते ही वहां से फरार हो गए. बालको की मालिक कंपनी यानी लंदन में
रजिस्टर्ड अनिल अग्रवाल की स्टरलाईट-वेदांता, इस चिमनी को बनाने वाली चीन की
कंपनी शैनदोंग इलेक्ट्रिक पावर कंस्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन यानी सेपको और उसकी ठेका
कंपनी जीडीसीएल के लोग अपने दफ्तरों में ताला लगाकार वहां से भाग खड़े हुए.
असहाय मज़दूर रोते-चिखते-चिल्लाते रहे.
बचाव के बदइंतजाम
घटना की खबर तेज़ी के साथ बालको नगर में फैली और दो घंटे भर के भीतर पूरा
प्रशासनिक अमला घटना स्थल पर पहुंच चुका था. किसी तरह रोशनी का इंतजाम हुआ और
फिर शुरू हुआ राहत और बचाव का काम. वैसे इसे बचाव का काम कहना ठीक नहीं होगा
क्योंकि यहां तो केवल मलबे से लाशें निकालने का ही काम बचा था. लेकिन सबसे बड़ा
संकट यही था कि मलबा हटाने का काम कैसे शुरू हो ? जिला प्रशासन के लिए यह काम
नया था और आसपास की सहयोगी कंपनियों एसईसीएल, एनटीपीसी, लैंको, छत्तीसगढ़ पावर
कंपनी, नगर निगम के पास भी इस तरह की घटनाओं से निपटने के न तो प्रबंध थे और ना
ही इंतजाम. फिर भी जैसे-तैसे काम शुरू हुआ. रात का अधिकांश समय मलबे के आसपास
एकत्रित भारी मशीनों को हटाने में ही गुजर गया, उसके बाद मलबा हटाने की कोशिशें
शुरु हुईं. घटना के तीसरे दिन भुवनेश्वर स्थित सीआईएसएफ के विशेष प्रशिक्षण
प्राप्त रेस्क्यू ऑपरेशन टीम के आने के बाद मलबा और मजदूरों का शव निकालने के
काम में तेजी आई.
घटना वाले दिन जिले के कलेक्टर अशोक अग्रवाल ने कहा- मलबा जब तक हट नहीं जाता,
तब तक कह पाना मुश्किल है कि कितने मज़दूर थे. लेकिन हमारा अनुमान है कि 100 से
अधिक मज़दूर होंगे. कोरबा के एसपी रतनलाल डांगी ने कहा-हमारे लिए कह पाना
मुश्किल है कि कितने मज़दूर मरे हैं क्योंकि हमें न तो चिमनी बनाने वाली कंपनी
सिपको के अधिकारी मिल रहे हैं और न ही वेदांता या जीडीसीएल के अधिकारी. राज्य
के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कहा- किसी को बख्शा नहीं जाएगा और मामले की न्यायिक
जांच होगी.
लेकिन इस तरह के तमाम दावे और बयानों का झूठ भी इन 10 दिनों में चिमनी की तरह
की भरभरा कर गिर गया है. इन 10 दिनों में आज तक प्रशासन यह बताने की स्थिति में
नहीं है कि घटना वाले दिन कितने मज़दूर काम कर रहे थे. हालत ये है कि इस
दुर्घटना की जिम्मेवारी अब तक तय नहीं की जा सकी है. न्यायिक जांच के बारे में
अब तक यह नहीं पता चला है कि जांच कौन करेगा और उसके बिंदू क्या होंगे. जाहिर
है, इतने बड़े हादसे में अब तक किसी की गिरफ्तारी का तो सवाल ही नहीं है.
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सरकारी कार्रवाई के फरेब
जहां तक सिपको, वेदांता और जीडीसीएल के अधिकारियों के नहीं मिलने की बात है,
प्रशासन ने पहले ही दिन बिना बयान लिए सेपको के 76 चीनी अधिकारियों को अपने
संरक्षण में देश से बाहर जाने के लिए भारी सुरक्षा के बीच एयरपोर्ट भी पहुंचाया
गया. भला हो केंद्र सरकार का, जिसने इन अधिकारियों के देश छोड़ कर जाने पर
प्रतिबंध लगा दिया.
लंदन की जिस वेदांता के लिए यह जानलेवा चिमनी बन रही थी, उसके सीईओ गुंजन
गुप्ता दूसरे दिन घटनास्थल पर थे लेकिन आज तक न तो गुंजन गुप्ता से पूछताछ हुई
और ना ही गिरफ्तारी. पूरे मामले की लीपापोती में जुटी राज्य सरकार के
अधिकारियों का दावा है कि उन्होंने गुंजन गुप्ता को नोटिस जारी किया है.
छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के मज़दूर युनियन से संबद्ध सुधा भारद्वाज पूछती हैं-“
जब भोपाल गैस कांड में एंडरसन के प्रत्यार्पण की कोशिश जैसे उदाहरण हमारे सामने
हैं तो इस पूरे मामले के लिए सीधे तौर पर जिम्मेवार वेदांता के मालिक अनिल
अग्रवाल और उनके मातहत गुंजन गुप्ता को अब तक गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया है
?”
इसका जवाब कोई भी देने के लिए तैयार नहीं है. ट्राईबल वेलफेयर सोसायटी के
प्रवीण पटेल कहते हैं कि राज्य सरकार का जो रवैय्या है, उससे लगता है कि वह
वेदांता के दबाव या प्रलोभन में काम कर रही है और उसका पूरा ध्यान मामले को
रफा-दफा करने में है.
सरकार का वेदांता प्रेम
वेदांता जिस जमीन पर चिमनी का निर्माण कर रही है, उस पर वेदांता के बेजा कब्जा
को लेकर मामला न्यायालय में है. भाजपा सरकार के पिछले कार्यकाल में जब कोरबा
निवासी राज्य के वन मंत्री ननकी राम कंवर ने वेदांता के खिलाफ मोर्चा खोला और
1036 एकड़ वन भूमि पर बेजा कब्जे का सवाल उठाया तो हफ्ते भर बाद उनका विभाग छिन
गया. उसके बाद यह मामला कोर्ट तक गया. जब मामला कोर्ट में था, उसी समय सरकार ने
मुख्यमंत्री के गृहक्षेत्र कवर्धा यानी कबीरधाम का एक बड़ा हिस्सा वेदांता को
खनिज उत्खनन के लिए दे दिया. मध्य प्रदेश ने 16 जून 1969 को एक अधिसूचना जारी
की थी कि इस इलाके में खनिज उत्खनन का काम केवल सरकारी उपक्रम ही कर सकते हैं.
अलग छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद भी कई कंपनियों को इसी आधार पर यहां उत्खनन की
अनुमति नहीं दी गई. लेकिन वेदांता के लिए इस नियम को किनारे करके बैगा आदिवासी
बहुल यह इलाका बाक्साईट खनन के लिए दे दिया गया. बिना आदिवासियों के विस्थापन
का काम किए वेदांता ने खनन का काम शुरू कर दिया और सरकार आंख बंद किए बैठी रही.
छत्तीसगढ की राजधानी रायपुर में वेदांता को करोड़ों की जमीन कौड़ियों में दिए
जाने को लेकर भी विधानसभा में खूब बहस हुई लेकिन सरकार का वेदांता प्रेम कम
नहीं हुआ और सरकार ने लगातार कोशिश की कि करोड़ों की जमीन इस तरह कौड़ियों में
दिए जाने को जायज ठहराया जा सके. ऐसे में अचरज नहीं कि वेदांता के इस निर्माण
को लेकर सरकार का रवैय्या चुप्पी साधने वाला ही रहा. इसके अलावा जब विपक्ष ने
इस मामले में सीबीआई जांच की मांग की तो सरकार ने इस मांग को खारिज कर दिया
गया.
कोरबा के महापौर लखनलाल देवांगन कहते हैं- “ हमने इस चिमनी के अवैध निर्माण के
खिलाफ वेदांता को कई बार नोटिस जारी किया. यहां तक कि चिमनी हादसे से हफ्ते भर
पहले हमने इसका निर्माण कार्य भी रुकवा दिया था. लेकिन वेदांता के अधिकारियों
ने चुपके-चुपके फिर से काम शुरु कर दिया. अगर वेदांता ने नियमानुसार काम किया
होता तो शायद इतने मज़दूरों की जान नहीं जाती.”
घटिया निर्माण
घटनास्थल से लौटे राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी कहते हैं- “चिमनी
निर्माण के लिए घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया जा रहा था और मैं एक इंजीनियर
होने के नाते जानता हूं कि निर्माण कैसे होता है.”
अजीत जोगी मरने वाले मज़दूरों की संख्या पर भी सवाल खड़े करते हैं. लेकिन
वेदांता के संवाद प्रमुख बी के श्रीवास्तव सफाई देने वाले अंदाज में कहते हैं-
“ जिला प्रशासन के नेतृत्व में बचाव का काम किया और खुदाई में कुल 41 मज़दूरों
की लाशें बरामद हुई हैं. इसके अलावा इस दुर्घटना में 6 मज़दूर घायल हुए हैं.”
क्या आपको लगता है कि चिमनी में केवल 47 मज़दूर काम कर रहे थे और जिन कैंटिन व
शेडों पर यह चिमनी गिरी, उसमें कोई नहीं था ? श्रीवास्तव कहते हैं- “जो कुछ है,
वह सबके सामने है. हमारे पास कोई लिस्ट नहीं है, जिससे यह बताया जा सके कि
चिमनी में कितने मज़दूर काम कर रहे थे.”
श्रीवास्तव अपने स्वर में परेशानी का भाव लाते हुए बताते हैं कि 23 सितंबर को
बारिश और आंधी के साथ चिमनी पर आकाशीय बिजली गिरी, जिसके कारण यह दुर्घटना हुई.
लेकिन श्रीवास्तव इस बात का जवाब नहीं देते कि अगर चिमनी पर आकाशीय बिजली गिरी
थी तो चिमनी में काम करने वाले एक भी मज़दूर के शरीर क्यों नहीं जले या निर्माण
में प्रयुक्त छड़ों पर इनका असर क्यों नहीं हुआ ? श्रीवास्तव इसके बाद 9/11 के
उदाहरण के साथ अपने तर्क गढ़ने लग जाते हैं.
स्थानीय पत्रकार मोहम्मद असलम बताते हैं कि वेदांता ने इस मलबे को जहां फेंका
है, वहां मानव शरीर के कई अंग बिखरे हुए हैं, जिन्हें आवारा कुत्ते और दूसरे
जानवर खा रहे हैं.
लेकिन बिहार में कभी कबाड़ी के रूप में अपनी जीवन यात्रा शुरु करने वाले
वेदांता के मालिक अनिल अग्रवाल के पास अभी इतना वक्त नहीं है कि वो इस तरह की
दुर्घटनाओं पर सोचें, इसकी जिम्मेवारी तय करें. लंदन स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट
की गई 1.8 बिलियन यूएस डॉलर वाली इस कंपनी के काम में वे बहुत व्यस्त रहते हैं.
और जब व्यस्त नहीं रहते तो अनिल अग्रवाल अपना खाली समय हिंदी फिल्म देखने, योग
करने और कभी-कभी साईकलिंग में गुजारना पसंद करते हैं.
02.10.2009, 18.15 (GMT+05:30) पर
प्रकाशित