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अयोध्या पर नरसिंह राव ने कहा था...
अयोध्या
अयोध्या पर नरसिंह राव ने कहा था...
6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिराये जाने के बाद देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिंह राव ने अगले दिन संसद में बयान दिया था. यहां प्रस्तुत है 7 दिसंबर 1992 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिंह राव का संसद में दिया गया भाषण
3
दिसंबर, 1992 को अयोध्या की स्थिति और प्रस्तावित कार सेवा के संदर्भ में संसद के
दोनों सदनों में वक्तव्य दिए गए. तभी से, हालात में तीव्र गति से बदलाव हो रहा था.
माननीय सदस्यों को भलीभांति पता है कि केंद्र सरकार ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद
विवाद का सौहार्द्रपूर्ण हल निकालने का हर संभव प्रयत्न किया. 27 जुलाई, 1992 को
संसद में अपने वक्तव्य के बाद, अनेक व्यक्तियों और संगठनों से लंबी बातचीत की.
इनमें दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों, राजनीतिक दलों के नेताओं, मीडिया
प्रतिनिधियों, धार्मिक नेताओं तथा अन्य व्यक्तियों से चर्चा शामिल है.
कार सेवा फिर से शुरू करने के दुर्भाग्यपूर्ण और एकतरफा फैसले से बातचीत के इस दौर
में रुकावट आ जाने के बावजूद मैंने विहिप तथा उसके सहयोगी संगठनों के नेताओं से
बातचीत करके उन्हें उनके रवैये की अतार्किकता से वाकिफ करवाने और किसी
सर्वस्वीकार्य हल पर राजी करवाने का हर संभव प्रयास किया. किंतु विहिप व सहयोगी
संगठनों ने अत्यंत अड़ियल रुख अपनाया और कार सेवा रोकने या स्थगित करने के स्थान पर
इसकी तैयारियां आरंभ कर दीं.
जैसा कि सदन को ज्ञात है, माननीय उच्चतम न्यायालय ने भी इस मामले को अपने हाथ में
ले लिया था. उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि किस तरह वह उसके
द्वारा पहले दिए गए आदेशों को लागू करने में मदद कर सकती है. सुनवाई के दौरान
केंद्र सरकार ने न्यायालय को आश्वासन दिया कि न्यायालय के आदेशों को लागू करने में
राज्य सरकार को जो भी सहायता चाहिए होगी, वह देने के लिए तैयार है.
हमने यह भी कहा कि न्यायालय द्वारा अपने आदेशों का पालन करवाने के लिए दिए गए
निर्देशों को लागू करने के लिए केंद्र सरकार आवश्यक कदम उठाएगी.
उत्तर प्रदेश की सरकार को न्यायालय को आश्वासन और हलफनामा देना पड़ा कि अधिग्रहीत
भूमि पर तब तक किसी तरह का स्थायी-अस्थायी निर्माण कार्य नहीं होगा और न ही किया
जाएगा, किसी तरह की निर्माण सामग्री या उपकरण को नहीं ले जाया जाएगा, किसी तरह कि
भूमि अधिग्रहण से संबंधित रिट याचिका पर उच्च न्यायालय के अंतरित आदेश लागू हैं.
राज्य सरकार ने यह हलफनामा भी दिया कि कार सेवा कुछ विशेष धार्मिक गतिविधियों के
लिए प्रतीकात्मक अवसर रहेगा और इसे प्रतीकात्मक या अन्य किसी रूप में किसी निर्माण
कार्य के तौर पर राज्य सरकार, और केंद्र सरकार को भी, यह निर्देश दिया कि इस तथ्य
का उचित प्रचार किया जाए कि कार सेवा में किसी प्रकार का निर्माण कार्य या
अधिग्रहीत भूमि पर निर्माण-सामग्री लाना सम्मिलित नहीं होगा, जिससे कि सभी कार
सेवकों को इस संबंध में ठीक से जानकारी हो जाए.
न्यायालय के बाहर भी, भारत सरकार ने बार-बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के समक्ष
यह मुद्दा उठाया और निवेदन किया कि वे यह सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम
उठाएं, जिससे न्यायालय के आदेशों के विपरीत या न्यायिक व्यवस्था की अवमानना करने
वाली किसी गतिविधि की अनुमति न दी जाए. केंद्र सरकार की यह चिंता समय-समय पर राज्य
सरकार के सम्मुख व्यक्त की गई. अपने 3 दिसंबर, 1992 के पत्र में भी गृहमंत्री ने
पुन: मुख्यमंत्री से यह निवेदन किया था.
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद को लेकर केंद्र सरकार लगातार फिक्रमंद थी. गृहमंत्री ने
अनगिनत बार बैठकों में, चर्चाओं व पत्रों आदि के जरिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री
के समक्ष यह मुद्दा उठाया. उन्होंने मुख्यमंत्री को सलाह दी कि ढांचे की सुरक्षा
व्यवस्था की गहन समीक्षा की जाए, जिसमें केंद्रीय संगठनों के प्रतिनिधि भी सम्मिलित
हों. किंतु, हमारी ओर से बार-बार निवेदन करने पर भी राज्य सरकार के द्वारा यह सुझाव
स्वीकार नहीं किया गया. इसके अलावा राज्य सरकार द्वारा उठाए गए सुरक्षा उपायों की
कतिपय खामियों की ओर भी राज्य सरकार का ध्यान खींचा गया.
हमने मुख्यमंत्री को यह जानकारी भी दी कि हमारे अनुमान के अनुसार राज्य सरकार
द्वारा अयोध्या में नियुक्त किए गए सुरक्षाबल सुरक्षा आवश्यकता को पूरा नहीं कर
सकेंगे, विशेषकर किसी अनहोनी के घट जाने की स्थिति में धार्मिक उन्माद के माहौल में
हिंसा भडक़ उठने पर.
30 नवंबर, 1992 को केंद्र सरकार ने सुरक्षा व्यवस्था में कमियों की ओर उच्चतम
न्यायालय का ध्यान आकर्षित किया, न्यायालय ने राज्य सरकार को केंद्र सरकार द्वारा
दिए गए सुझावों की ओर समुचित ध्यान देने का निर्देश दिया. गृहमंत्री ने भी
मुख्यमंत्री को लिखा कि कार सेवकों की बड़ी संख्या को देखते हुए उनके खाने, पीने व
शौचादि का समुचित इंतजाम न होने की सूचना मिली है, इसलिए इस दिशा में कदम उठाए
जाएं, ताकि स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या पेश न आए और कोई महामारी न पनपे.
केंद्र सरकार ने सावधानी बरतते हुए 24 नवंबर, 1992 को ही अयोध्या के नजदीक अनेक
स्थानों पर अर्धसैनिक बलों को तैनात कर दिया था, ताकि विवादित ढांचे की सुरक्षा और
कानून व्यवस्था को बनाए रखने के जब भी राज्य सरकार की आवश्यकता हो, तो कम से कम समय
में ही सुरक्षा बल उपलब्ध करवाए जा सकें.
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केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की लगभग 195 टुकडिय़ां तैनात की गई थी और आकस्मिक स्थिति से
निबटने के लिए उन्हें सभी आवश्यक सुविधाएं जैसे आंसू गैस, रबड़ की गोलियां,
प्लास्टिक के छर्रे और लगभग 900 वाहन उपलब्ध करवाए गए. इन बलों में महिला केंद्रीय
रिजर्व पुलिस बल की टुकडिय़ां, सुरक्षा गार्ड के कमांडो, बम निरोधी दस्ता ओर स्निफर
डॉग स्क्वैड शामिल थे. मंतव्य यह था कि राज्य सरकार बिना ज्यादा समय खोए इन बलों का
इस्तेमाल कर सके.
गृहमंत्री ने मुख्यमंत्री ये अनुरोध किया कि अयोध्या में सुरक्षा प्रबंधों के संबंध
में बलों को तैनात करने के विषय में विचार करें. किंतु, बलों का उपयोग करने के
बजाय, मुख्यमंत्री ने बलों को तैनात करने के हमारे कार्य की आलोचना की और इन्हें
वापस बुलाने की मांग की. उन्होंने केंद्र सरकार के कार्य की वैधता को चुनौती तक दे
डाली. राज्य सरकार केवल बम निरोधी दस्ते और स्निफर डॉग स्क्वैड सेवाएं लेने के लिए
सहमत हुई और वह भी तब, जब केंद्र सरकार ने राज्य सरकार का ध्यान विवादित ढांचे पर
विस्फोटकों के संभावित हमले की ओर दिलाया और इन दस्तों को तैनात करने का अनुरोध
किया.
मुख्यमंत्री के विचित्र और अडिय़ल रवैये के बावजूद, अयोध्या के समीप तैनात केंद्रीय
अर्धसैनिक बलों को एकदम सचेत रहने को कहा गया ताकि आवश्यकता पड़ते ही वे राज्य
प्रशासन के लिए उपलब्ध रहें. संघ के गृह सचिव ने 6 दिसंबर, 1992 सुबह ही केंद्रीय
अर्धसैनिक बलों को यह सूचना दे दी थी.
6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या से मिलने वाली प्रारंभिक सूचना थी कि स्थिति शांतिपूर्ण
है. राम कथा कुंज में एक सार्वजनिक सभा के लिए लगभग 70,000 कार सेवक एकत्र हुए थे,
जिन्हें संघ परिवार के वरिष्ठ नेता संबोधित करने वाले थे. चबुतरे पर लगभग पांच सौ
साधु-संत एकत्र थे और पूजा की तैयारियां हो रही थी. 11:45 से 11:50 के बीच, लगभग
150 कार सेवक बाड़ को तोड़ कर चबुतरे पर जा पहुंचे और पुलिस बल पर पथराव करने लगे.
लगभग 1000 कार सेवक राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद ढांचे में जा घुसे. लगभग 80 कार सेवक
ढांचे के गुंबद पर चढऩे में सफल हो गए और उसे तोडऩे लगे.
यह विश्वास
करना कठिन है कि कोई जिम्मेदार राज्य सरकार इस तरीके से भी कार्य कर
सकती है. हमारा संघीय संगठन है और इस तथ्य
को स्वीकार करते हुए हमने राज्य सरकार द्वारा दिए गए वचन और आश्वासनों
पर विश्वास किया. |
इस बीच कार सेवकों ने ढांचे की बाहरी दीवार को तोड़ दिया था. लगभग 12:20 पर परिसर
में लगभग 25000 कार सेवक थे, जबकि एक बड़ी संख्या बाहर जमा हो रही थी. 2:20 पर
75000 लोगों की विशाल भीड़ ढांचे को घेरे हुए थी, जिसमें से अनेक इसे तोडऩे में
जुटे थे. 6 दिसंबर, 1992 की शाम होने तक ढांचे को पूरी तरह से मिटा दिया गया. समझा
जाता है कि मुख्य पुजारी ने ढांचे के भीतर से राम लला की मूर्ति को सुरक्षित रखने
के लिए हटा दिया था, कथित रूप से मूर्तियों को फिर से स्थापित कर दिया गया और उनके
ऊपर एक टीन शेड डाल दिया गया.
प्राप्त जानकारी के मुताबिक राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के ध्वंस को रोकने के लिए
स्थानीय पुलिस ने कुछ नहीं किया. ढांचे के एक एकाकी हिस्से में तैनात केंद्रीय
रिजर्व पुलिस बल राज्य सरकार के अधिकारियों के आदेश के अभाव में, जिनके अधीन वे
तैनात थे, कोई कार्रवाई नहीं कर सकी.
कार सेवकों ने लोहे के खंभों, पलटी हुई ट्रालियों आदि की बाधा डाल कर अतिरिक्त
पुलिस बलों को अयोध्या जाने से रोक दिया. अयोध्या और दर्शन नगर के बीच के सभी रेववे
फाटकों पर कार सेवकों ने ताले डाल दिए थे.
विवादित स्थल पर कार सेवकों ने हमले की सूचना मिलते ही, संघीय गृह सचिव ने राज्य
अधिकारियों से संपर्क किया और राज्य प्रशासन के हाथ से तेजी से निकलती जा रही
स्थिति के मद्देनजर परामर्श दिया कि वे फैजाबाद व अन्य समीपवर्ती स्थानों पर तैनात
केंद्रीय अर्धसैनिक बलों का उपयोग करें, जिन्हें पहले ही बिना समय गंवाए राज्य
सरकार के लिए उपलब्ध रहने का आदेश दिया जा चुका था.
तदंतर, राज्य प्रशासन ने केंद्रीय अर्धसैनिक बल की तीन बटालियन मांगीं, जो तुरंत
उपलब्ध करवा दी गई. मगर जब ये बल फैजाबाद से अयोध्या की ओर बढ़े तो स्थानीय
मजिस्ट्रेड ने यह कह कर इन्हें वापस कर दिया कि उन्हें आदेश है कि बल का प्रयोग न
किया जाए.
बाद में राज्य सरकार ने केंद्रीय अर्धसैनिक बल की पचास कंपनियों की मांग की, जो उसे
तुरंत उपलब्ध करवा दी गई. संघीय गृह सचिव और गृह मंत्रालय के अन्य वरिष्ठ अधिकारी
पूरी दोपहर लगातार राज्य प्रशासन के संपर्क में रहे और राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद
परिसर की बिगड़ती स्थिति की ओर उनका ध्यान खींचते रहे. गृहमंत्री ने भी कई बार
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री से फोन पर बात की.
इन परिस्थितियों के मद्देनजर, केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति से उत्तरप्रदेश में
विधानसभा को भंग करने और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की. इस संदर्भ
में कल रात आदेश जारी कर दिए गए. गृह मंत्रालय ने सभी राज्य और संघीय क्षेत्रों की
सरकारों को सतर्क रहने और अन्य स्थानों पर सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए सभी
आवश्यक उपाय करने का अनुरोध किया है.
अयोध्या के घटनाक्रम के परिणामस्वरूप हुए विवादित ढांचे के दुखद ध्वंस से हम सबको
अत्यंत पीड़ा हुई और गहरा आघात पहुंचा है. यह विश्वास करना कठिन है कि कोई
जिम्मेदार राज्य सरकार इस तरीके से भी कार्य कर सकती है. हमारा संघीय संगठन है और
इस तथ्य को स्वीकार करते हुए हमने राज्य सरकार द्वारा दिए गए वचन और आश्वासनों पर
विश्वास किया.
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मुझे दुख है कि राज्य सरकार ने न केवल हमारे, बल्कि पूरे राष्ट्र के विश्वास को
तोड़ा है. इसने देश के उच्चतम न्यायालय के साथ ही राष्ट्रीय एकता परिषद जैसे संगठन
के समझ ली गई शपथ का भी अनादर किया है. मेरी जानकारी के अनुसार 6 दिसंबर, 1992 की
शाम को एक विशेष सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय के माननीय न्यायाधीशों ने भी
राज्य सरकार द्वारा न्यायालय के समझ दिए गए अपने आश्वासन पूरे कर पाने में बुरी तरह
नाकाम रहने पर अपना दुख और पीड़ा व्यक्त की है.
महोदय, अनेक मूक बलिदानों द्वारा प्राप्त स्वतंत्रता के बाद राष्ट्र इस क्रूरतम
घटना का साक्षी बना. जिन्होंने कुछ समय से इस देश के लोगों के दिलो-दिमाग पर कब्जा
कर रखा है, उन्होंने अंतिम हमले में हिस्सा लेकर अयोध्या में बाबरी मस्जिद को
ध्वस्त किया.
हमारे प्राचीन देश में सदियों से अनेक मत और संप्रदाय रहे हैं, जिन्होंने विभिन्न
धर्मो और मान्यताओं के असंख्य लोगों को प्रेरित किया है. वस्तुत: धर्मों, मान्यताओं
और संप्रदायों की यही बहुलता भारतवर्ष की पहचान रही है. हर मंदिर पवित्र है, हर
मस्जिद पाक है, हर गुरुद्वारा प्रेरणा का स्त्रोत है और हर चर्च ईश्वर से संवाद
करने का स्थान है.
सांप्रदायिक ताकतों ने, इस मामले में भाजपा-विहिप-आरएसएस, संयुक्त रूप से पवित्र
विश्वास का, जिसे हर भारतीय अपने दिल में संजोए हुए है, उल्लंघन करने को सही समझा.
विनाश की इस पागलपन भरी दौड़ को रोकने का हर संभव उपाय किया गया. हर राजनीतिक और
संवैधानिक उपाय को अपनाया गया ताकि हम विवेक और बुद्धि से इस असमाध्येय को साध
सकें. यही एकमात्र तरीका है जिसके अनुसार कोई प्रजातांत्रिक, सभ्य देश कार्य कर
सकता है.
यदि कुछ लोग इस संगठन को तोडऩा चाहते हैं और किसी भी कीमत पर सत्ता में आने के लिए
स्वयं को सारे अधिकार दे देते हैं, तो राष्ट्र को ऐसी धमकियों से सख्ती और पूर्णता
से निपटने के लिए साहस जुटाना होगा.
मेरी सरकार इन ताकतों के खिलाफ खड़ी होगी और मुझे यकीन है कि संसद, और देशभक्ति की
भावना से भरे राजनीतिक दल और हिंदुस्तान के लोग हमें समर्थन देंगे. देश भर में
लोगों को भडक़ाने वाले, लोगों की भीड़ को अयोध्या लाने वाले और अपनी मौजूदगी में
उन्हें इस घिनौने कार्य के लिए भड़काने वाले लोगों के खिलाफ हम संविधान के अनुसार
सख्त कार्रवाई करेंगे.
मैं यह वादा करता हूं कि कानून लोगों को अवश्य पकड़ेगा, फिर वे चाहे कोई भी हों.
संप्रदायवाद, कट्टरवाद और रूढि़वाद का कैंसर कुछ समय से हमारे देश की जड़ों को
खोखला करने में लगा है. देश के उदारवादी और प्रजातांत्रिक स्वरूप में हर व्यक्ति को
अपने मत के अनुसार आचरण करने और उसका प्रचार-प्रसार करने का अधिकार है. पर इस देश
में यह अधिकार किसी को नहीं दिया गया है कि प्रजातंत्र और धर्मनिरपेक्षता के हमारे
मूलभूत आदर्श व विचारों पर कुठाराघात करे.
दुर्भाग्य से कुछ लोगों और राजनीतिक दलों ने इन सीमाओं को तोडऩे का फैसला किया है
और हमारे महान देश देश की राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक धारा में जहर घोलने का
प्रयास किया है. हमने तय किया है कि अपने देश के भविष्य की कीमत पर हम इन लोगों और
संस्थाओं को जब और नहीं पनपने देंगे. इन लोगों और संस्थाओं की गतिविधियों को रोकने
के लिए सुरक्षित कदम उठाए जाएंगे और अगर वे विरोध करेंगे तो उन्हें अपने कार्य का
नतीजा भुगतना होगा, जिसमें प्रतिबंध शामिल है.
हमारे देश के संघीय ढांचे में एक शक्तिशाली ऐकिक केंद्र है. हमने हमेशा एक ऐसे
वातावरण के निर्माण की कोशिश की है, जिसमें सभी राज्य और संस्थान जन-कल्याण की
सहयोगपूर्ण भावना से कार्य करें. हमारा इरादा इस नीति को कायम रखने का है. पर यह
स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि जिसने भी अयोध्या में हुए इस आपराधिक कार्य के लिए
मदद दी है या इसके लिए उकसाया है, उसे अपने कार्य का परिणाम भुगतना होगा. इस विषय
पर किसी तरह का कोई समझौता नहीं हो सकता.
राष्ट्रीय संकट के इस क्षण में मैं सदन के सभी सदस्यों से एकजुट होने की अपील करता
हूं, क्योंकि तभी हम न सिर्फ अपने संविधान की, बल्कि अपने देश के भविष्य की भी
रक्षा और संरक्षा कर सकेंगे. इस पवित्र भूमि के कोने-कोने में रहने वाले अल्पसंख्यक
लोगों से मैं यहीं कहना चाहूंगा कि कांग्रेस पार्टी उनके अधिकारों, जीवन और
स्वतंत्रता की रक्षा करने के लए अपने वादे से कभी पीछे नहीं हटेगी.
उनके साथ किए गए इस वादे का, जो न केवल इस देश के संविधान ने किया है, बल्कि हमारे
महान नेताओं गांधी जी, पंडित जवाहरलाल नेहरू जी,लाल बहादुर शास्त्री जी, श्रीमती
इंदिरा गांधी जी और श्री राजीव गांधी जी ने भी किया था, पूरा करने के लिए हम हर
आवश्यक उपाय करेंगे. किसी भी परिस्थिति में किसी को हमारे इरादे को गलत नहीं समझना
चाहिए.
मस्जिद को गिराना बर्बर कार्य था. सरकार इसका पुनर्निर्माण करवाएगी. भूमि और नए राम
मंदिर के संबंध में 11 दिसंबर को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के फैसले के
बाद समुचित कदम उठाए जाएंगे.
23.09.2010,
04.12 (GMT+05:30) पर प्रकाशित
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| इस समाचार / लेख पर पाठकों की प्रतिक्रियाएँ | |
| Ravinder Vajpayee () Jammu Kashmir | | | Its nice to read ur newspaper here.I am highly thankful to u for kindness as u send me some imp.document.wish u the same in Future as well. | | | | |
| ramagya shashidhar (assichauraha.blogspot.com) varanasi | | | इस कमल को हमेशा कीचड़ भाता है. अब मुक्ति संभव है. | | | | |
| Sainny Ashesh (sainny.ashesh@gmail.com) | | | नाली में कुलबुलाते हुए कीड़ों को अगर कभी भी इस बात का पता न चले की मंदिर और मस्जिद का क्या अर्थ है और राम या रहीम के क्या मानी हैं तो क्या हैरानी ? जिन्हें राम और रहीम का सही अर्थ मालूम है, उन्हें इन ज़हरीले कीड़ों को उनकी सही जगह पर सीमित रखने के लिए लगातार उपाय करने हैं. राम-राम. | | | | |
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