काला धन पर श्वेत पत्र
बहस
काला धन पर श्वेत पत्र
कनक तिवारी
अब सेवानिवृत्त लेकिन बहुचर्चित न्यायाधीश डॉ. सुदर्शन रेड्डी की अध्यक्षता वाली
द्विसदस्यीय खंडपीठ ने सुरिन्दर सिंह निज्जर सहित सुप्रीम कोर्ट का एक और ऐतिहासिक
फैसला 5 जुलाई 2011 को सुनाया. एक अरसे से चल रही काला धन संबंधी राष्ट्रीय चिन्ता
को सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से मिटाने में एक महत्वपूर्ण दिशा मिली है. देश के कुछ
ख्यातनाम व्यक्तियों राम जेठमलानी, गोपाल शर्मन, श्रीमती जयबाला वैद्य, के. पी. एस.
गिल, प्रो. बी. बी. दत्ता और सुभाष कश्यप ने मिलकर एक याचिका वर्ष 2009 में
अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की थी.
याचिकाकर्ताओं ने देश से बाहर गए हजारों करोड़ रुपयों के काले धन की वापसी की भूमिका
और लगातार चोरी को लेकर देश को जनता की गहरी चिंता से अदालत को अवगत कराया. सुप्रीम
कोर्ट ने मामले का संज्ञान लेकर एक के बाद एक कारगर आदेश जारी किए लेकिन केन्द्र
सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी. सरकार के विधि सलाहकार शब्द जाल के जरिए
याचिकाकर्ताओं और सुप्रीम कोर्ट का ध्यान बटाने की कोशिश करते रहे. उन्हें लगा होगा
कि वे कुशल तैराक की तरह कानून का भवसागर पार कर लेंगे. लेकिन दूरदर्शिता के अभाव
में जीने वाली सरकार एक तरह से दलदल में फंस गई है.
सुप्रीम कोर्ट ने भारत के असंख्य लोगों का नैतिक प्रतिनिधित्व भी करते हुए काले धन
की वैश्विक भूमिका को लेकर अपने निर्णय के एक चौथाई हिस्से में विशेषज्ञ नोट लिखा.
ऐसा विशेषज्ञ नोट भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के तहत कार्यरत किसी भी संस्था ने
आज तक शायद जारी नहीं किया. सरकारी विभागों की विवेचनात्मक और कार्यशील टिप्पणियों
में एक तरह का ठंडा उबाऊपन झांकता रहता है. उसे देश की साधारण जनता भी स्वीकार नहीं
कर पाती. इसके बरक्स सुप्रीम कोर्ट की भूमिका में काले धन की खलनायकी का नकाब
उतारने की कोशिश प्रशंसनीय लगती है.
सुप्रीम कोर्ट के सामने मुख्य सवाल यह था कि जब सरकार ने यह स्वीकार कर लिया है कि
देश के कुछ धनाड्यों का अकूत धन विदेशी बैंकों और मुख्यतः स्विटजरलैंड तथा जर्मनी
के निकट स्थित एक राष्ट्र राज्य के बैंकों में जमा होता हुआ हजारों लाखों करोड़
रुपयों की अंकगणित बन गया है. तब सरकार को ऐसे खतरनाक लोगों के काले धन का ब्यौरा
उजागर तक करने में हीला हवाला क्यों करना पड़ रहा है.
उदाहरण के लिए हसन अली और तापुरिया दंपत्ति को ही स्वयं प्रवर्तन निदेशालय ने
क्रमशः 40 हजार करोड़ रुपयों और 20580 हजार करोड़ रुपयों की कर अदायगी का नोटिस जारी
किया है. फिर भी उन्हें हिरासत में लेकर पूछताछ करने की कोई त्वरित और कठोर
कार्यवाही नहीं की गई. हसन अली का पासपोर्ट जब्त किया गया तो उसने कथित तौर पर एक
राजनेता की मदद से पटना से दूसरा पासपोर्ट बनवा लिया. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को
बार बार हिदायत दी है लेकिन सरकार की अजगर गति निश्चिंत भाव से जारी रही.
इस पृष्ठभूमि में सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की मांगों पर विचार किया कि देश
के काले धन के जमाखोरों और टैक्स चोरों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने में सरकार
जानबूझकर ढीली पड़ती जा रही है. ऐसे काले धन को देश के बाहर आसानी से ले जाया जा रहा
है. फिर उसे चोरी छिपे लाकर देश की अर्थव्यवस्था में रुकावट, महंगाई और काला बाजार
को प्रोत्साहन दिया जा रहा है. काला धन भारत विरोधी आतंकी कार्यवाही में भी
इस्तेमाल होने के आरोप लगते रहे हैं.
याचिकाकर्ताओं ने सरकार से बार बार सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत कई तरह की
जानकारियां मांगीं लेकिन वे उन्हें तरह तरह के शासकीय और वैधानिक बहानों की आड़ में
नहीं दी गईं. याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि संकेत सूत्र उपलब्ध होने के बावजूद भी
विदेशों से प्रामाणिक जानकारियां इकट्ठी नहीं की जा रही हैं. अन्वेषण सही दिशा में
एवं त्वरित गति से नहीं हो रहा है. काले धन के भारत में रह रहे कारोबारियों से भी
पूछताछ करने में सरकारी एजेन्सियों को परहेज हो रहा है. यह भी आईने की तरह साफ हो
रहा है कि ऐसे काला धन सम्बन्धी जानकारी प्रभावशाली राजनेताओं, नौकरशाहों और
धनाड्यों की मिली जुली कुश्ती की तरह जनता तो क्या सुप्रीम कोर्ट के इजलास में आने
नहीं दिया जा रहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने स्विटजरलैंड के विवादास्पद बैंकों की भारतीय अर्थव्यवस्था को तहस
नहस करने की कोशिशों को सरकारी दावों के बावजूद ठीक ठीक समझने में भूल नहीं की.
स्विस बैंक यू. बी. एस. की एक इकाई यू. बी. एस. सिक्यूरिटी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड
ने भारत स्थित स्टैंडर्ड चार्टर्ड म्यूचुअल फंड व्यवसाय को खरीदना चाहा था. इस बैंक
के खिलाफ 2004 में भारतीय स्टॉक एक्सचेंज को भी क्षतिग्रस्त करने के आरोप सेबी ने
लगाए थे. इसके बावजूद रिजर्व बैंक ने किसी अज्ञात दबाव के कारण पहले की गई मनाही को
बाद में वापस ले लिया.
आगे पढ़ें