ओसामा को अमरीका की मदद
ओसामा को अमरीका की मदद
ऐसे हुई लादेन से मुलाकात-3
- 9/11 हमलों के बस कुछ
हफ्तों पहले, अमरीका ने तालिबान के लिए 43 मिलियन डॉलर की मदद की घोषणा
की थी.
- इस्लाम को निशाना बनाना
बंद होना चाहिए.
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हामिद मीर
इस्लामाबाद से
कोई भी इस बात से इंकार नहीं कर सकता कि 9/11 के बाद पूरे विश्व में 6300 से ज्यादा
आतंकी हमले हो चुके है, जिनमें मुसलमान लोग शामिल थे. लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि
सारे मुसलमान आतंकवादी होते हैं. सच तो ये है कि इन सभी 6300 आतंकी हमलों में गैर
मुसलमानों के मुकाबले मुसलमानों की हत्या ज्यादा संख्या में हुई. ज्यादातर हमलों
में हमलावर और भुक्तभोगी सारे मुसलमान थे. उदाहरण के तौर पर दरगई में हुए एक आतंकी
हमले में एक मुसलमान आत्मघाती आतंकी ने विस्फोट करके 43 पाकिस्तानी सेना के जवानों
की हत्या कर दी. वे सारे मुसलमान थे. दरगई की दुखद घटना ये दर्शाती है कि इस्लामी
कट्टरपंथी मुस्लिम देशों के ना सिर्फ गैर मुस्लिम आक्रमणकारियो के लिए, बल्कि
पश्चिम देशों में चल रहे आतंक का सफाया करने में मदद कर रहे मुस्लिम देशों के लिए
भी एक बहुत बड़ा खतरा बन रहे हैं.
उग्रवाद एक समस्या है और इस्लाम समाधान
इस्लामी शरियत और शिक्षा का हवाला |
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मैंने लादेन के साथ दो दिन
गुजारे और उनसे एक सवाल को लेकर उलझ गया– कैसे वो इस्लामी
शरियतों और शिक्षा को मद्देनज़र रखते हुए वो अमरीकियों की
हत्या को सही ठहराते हैं |
बहरहाल परवेज़ मुशर्रफ जैसे पश्चिमी देशों के मुस्लिम
सहयोगी बहुत ही बदकिस्मत हैं. एक तरफ, जार्ज डब्ल्यू. बुश जैसे उनके मित्रों ने
आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में उनके प्रयासों की हमेशा सराहना की है, पर दूसरी तरफ
राबर्ट स्पेंसर जैसे पश्चिमी लेखक एक ऐसी धारणा बना रहे हैं कि मुसीबत इस्लामी
कट्टरपंथी नहीं, बल्कि खुद इस्लाम है. राबर्ट स्पेंसर दावा करते हैं कि इस्लाम
एक हिंसक धर्म है, जो कि मुसलमानों को सारे इसाईयों और यहूदियों का कत्ल करने
का हुक्म देता है. वे ये भी आरोप लगाते हैं कि पवित्र कुरान मुसलमानों को झूठ
बोलने का हक देती है जिससे सारे मुसलमान कुरान को बदल सकें.
राबर्ट स्पेंसर गलत हैं. इस्लाम मुसलमान मर्दों को इसाई और यहूदी औरतों से बिना
अपना धर्म बदले शादी करने का हक देता है. इसका
मतलब क्या है ? कि इस्लाम एक सहिष्णु धर्म है. राबर्ट स्पेंसर इस तथ्य से इंकार
नहीं कर सकते कि पैगंबर हजरत मोहम्मद ने खुद मदीना के यहूदियों के साथ शांति संधि
की थी, अगर हमारे पैगंबर यहूदियों के साथ संधि कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं
यहूदियों और इसाईयों के साथ शांति संधि कर सकते हैं.
मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि क्यों कुछ पश्चिमी लेखक सारे मुसलमानों पर इस्लाम के
कट्टरपंथी रूप को थोपने में लगे हैं. मैं मुस्लिम विद्वान नहीं हूं, पर मेरे लिए
इस्लाम बहुत ही सरल है, और मेरी समझ के अनुसार, इस्लाम हिंसक नहीं है बल्कि
शांतिप्रिय है. इस्लाम कहता है कि निर्दोष गैर मुसलमान का रक्त एक मुसलमान के रक्त
के बराबर होता है. कुरान सच के लिए बोलता है, कुरान में झूठ बोलने की अनुमति नहीं
है. राबर्ट स्पेंसर गलत दावों और आँकडों से इस्लाम को बदनाम नहीं कर सकते हैं. वे
असली इस्लाम को कट्टरपंथ के साथ जोड़ नहीं सकते.
इस्लाम एक समाधान है और उग्रपंथ एक समस्या, इसलिए इस्लाम और उग्रवाद दो अलग अलग
चीज़े हैं. मेरा विश्वास है कि मुसलमानों और मस्जिदों का अमरीका और पश्चिम में होना
ही अमरीकी गैर-मुस्लिमों को सबसे ज्यादा सुरक्षा प्रदान करता है. यही कारण है कि अल
कायदा चाहता है कि मुसलमान अमरीका छोड़ दें, क्योंकि अगर अब अमरीका में 9/11 से
बड़ा कोई आतंकी हमली होता है तो, बहुत सारे मुसलमान भी उसमें मारे जाएंगे और ये
आतंकी हमला अल कायदा को एक बुरा नाम दे सकता है.
मैं सोचता हूं कि अमरीका के अंदर 9/11 के बाद कोई बड़ा आतंकी हमला नहीं हुआ है,
जिसका मुख्य कारण ये है कि यहां लाखों करोड़ों की संख्या में मुसलमान रहते हैं, और
अल कायदा का उन्हें अमरीका छोड़ने का आह्वान करने के बावजूद वे अमरीका छोड़ कर नहीं
जा रहे हैं.
अल कायदा द्वारा घोषित WMD हमले जिसे “अमरीका हिरोशिमा” कहा जाता है उसमें देरी के
और भी कई कारण हैं, पर मुख्य कारण है अमरीका में अभी भी बड़ी संख्या में मुसलमान
आबादी का होना.
मैं कैसे मिला ओसामा बिन लादेन से
अल
कायदा द्वारा बनाए गए “अमरीकी हिरोशिमा” के बारे में बताने से पहले मैं आपको ओसामा
बिन लादेन के बारे में बताना चाहूंगा. मेरे आसपास के कई लोगों की रुचि एक साधारण
सवाल में है : कैसे में विश्व के सबसे ज्यादा वांछित व्यक्ति के संपर्क में आया ?
मैं आज भी ये ही मानता हूं कि तालिबान के खिलाफ लिखा मेरा एक स्तंभ ही इसके लिए
जिम्मेदार था, जिसने मुझे ओसामा बिन लादेन के सामने ला खड़ा किया. मुझे याद है
तालिबानी नागरिक सेना के सितंबर 1996 में काबुल पर कब्जा करने के कुछ ही दिन बाद
मैं पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधानमंत्री मोहतरमा बेनज़ीर भुट्टो के साथ उनकी
ब्रिटेन और अमरीकी यात्रा को कवर करने के लिए सफर कर रहा था.
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मैंने एक सवाल उठाया- अगर अमरीका ओसामा को एक आतंकवादी मानती है तो वो तालिबान का
समर्थन क्यों कर रही है जो कि ओसामा की रक्षा कर रहा है ?
उन्होंने दक्षिण एशिया के हालात पर लंदन के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रैटिजिक
स्टडीज़ में एक लेक्चर दिया था. अपने भाषण में उन्होंने तालिबान का समर्थन किया था.
तालिबान ने 26 सितंबर को काबुल पर कब्जा कर लिया था और 30 सितंबर को श्रीमती भुट्टो
पश्चिमी श्रोताओं को ये मनाने में लगी हुई थीं कि तालिबान स्वदेशी हैं और पाकिस्तान
उनको चोरी छुपे मदद नहीं कर रहा है.
जब उन्होंने अपना भाषण खत्म किया तो एक पाकिस्तानी मानवाधिकार कार्यकर्ता आस्मा
जहांगीर ने खड़े होकर उनसे पूछा – “तालिबान अफगानिस्तान में लड़कियों के स्कूल बंद
करवा रहा है और आप उसका साथ दे रही हैं, ऐसी हालत में आप किस तरह स्त्रियों के
अधिकारों के समर्थक होने का दावा करती हैं ? ”
पाकिस्तान वापस आने के बाद, मैंने उर्दू के अखबार “डेली पाकिस्तान” में 8 अक्टूबर
1996 को एक स्तंभ लिखा जिसका शीर्षक था– “अमरीका तालिबान का समर्थन क्यों कर रहा है
?”
मेरे कानों में अभी तक मुल्ला उमर के शब्द गूंजते हुए सुनाई देते हैं-
"अगर हम अमरीकी एजेंट होते तो कैसे हमारी दोस्ती उनके सबसे बड़े दुश्मन
ओसामा बिन लादेन से होती ? ”
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मैंने अपने स्तंभ में तीन अखबारों को उद्धृत किया– दी ऑबजर्वर, दी संडे टाइम्स, दी
इंडीपेंडेंट जिन्होंने अपनी रिपोर्टों में परोक्ष रूप से आरोप लगाया कि अमरीकी
गुप्त रूप से तालिबान की सहायता कर रहा है, जो ओसामा बिन लादेन की रक्षा कर रहे
हैं. टिम मे क्लार्क ने 6 अक्टूबर को दी इंडीपेंडेंट में छपी, काबुल से भेजी हुई
रिपोर्ट में कहा है कि पाकिस्तान और अमरीका दोनों एक समूह का समर्थन कर रहे हैं, जो
कि अफगानिस्तान में मानवाधिकार हनन का काम कर रहा है. अपने स्तंभ में इस रिपोर्ट का
हवाला देते हुए मैंने एक सवाल उठाया–“अगर अमरीका मानता है कि ओसामा एक आतंकवादी है,
तो क्यों वो तालिबान का समर्थन कर रहा है, जो कि ओसामा की रक्षा कर रहा है ?”
तालिबान ने साधा संपर्क
तालिबान पर मेरे द्वारा लिखा गया hard hitting स्तंभ पश्तून बहुल नार्थ वेस्ट
फ्रंटियर प्रोविंस (NWFP) के एक मशहूर अखबार में छपा. उसके कुछ दिनों के बाद मुझसे
कुछ तालिबानी अधिकारियों ने संपर्क किया और अपनी इच्छा जताई कि मैं उनके नेता
मुल्ला मोहम्मद उमर से कंधार में आ कर मिलूं. मैं उस समय मुल्ला उमर से मिलने का
इच्छुक नहीं था क्योंकि पाकिस्तान के राजनीतिक हालात उस समय एक नाटकीय बदलाव की ओर
जा रहे थे. मेरे सूत्रों के अनुसार, राष्ट्रपति फारुख लेघारी प्रधानमंत्री बेनज़ीर
भुट्टो का सत्तापलट करने के लिए षडयंत्र रच रहे थे और मेरी रुचि पाकिस्तान के भीतरी
राजनीतिक हालात में ज्यादा थी. (बेनज़ीर को 6 नवंबर 1996 को आखिरकर हटा दिया गया
था).
इसके बाद एक आश्चर्यजनक खबर मिली. अमरीकी सचिव श्रीमती रॉबिन राफेल ने 16 नवंबर
1996 को न्यूयार्क में एक बंद दरवाजे में हुए संयुक्त राष्ट्र के सत्र में दो टूक
कहा -“ तालिबानी देश के दो तिहाई भाग से अधिक हिस्से को नियंत्रित करते हैं, वो
अफगानी हैं, वे स्वदेशी हैं, और उन्होंने सत्ता में रहने का प्रर्दशन किया है. ये
अफगानिस्तान और हम में से किसी के भी हित में नहीं है कि तालिबान पृथक हो”
मुझे रॉबिन राफेल के तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर लादे गए “सामाजिक प्रतिबंधों”
पर कोई चिंता नहीं होने से अचरज हुआ. छात्र शासकों के बारे में और ज्यादा जानने के
लिए मैंने अफगानिस्तान जाने और मुल्ला उमर से मिलने का फैसला किया. मैने कुछ
तालिबानी अधिकारियों से पाकिस्तान के प्रख्यात धार्मिक नेता मौलाना सामी उल हक के
जरिए संपर्क में आया और अगले महीने कंधार पहुँच गया.
मैं मुल्ला उमर, मुल्ला घौस और अन्य कई तालिबानी नेताओं से कंधार में मिला.
ज्यादातर ने “डेली पाकिस्तान” में 8 अक्टूबर को मेरे द्वारा लिखे गए स्तंभ और उनके
अनुसार मैंने रेडियो तेहरान में उन्हें “अमरीकी एजेंट” कहा था, जैसी बातों पर
नाराज़गी जताई. मेरे कानों में अभी तक मुल्ला उमर के शब्द गूंजते हुए सुनाई देते
हैं. उसने कहा – "अगर हम अमरीकी एजेंट होते तो कैसे हमारी दोस्ती उनके सबसे बड़े
दुश्मन ओसामा बिन लादेन से होती ? ”
मैंने पूछा “वो कहां हैं ?” और मुल्ला उमर ने सीधा सा जवाब दिया, “शेख जलालाबाद में
रह रहे हैं.”
मैंने फिर पूछा –“अगर आप अमरीकी एजेंट नहीं है तो क्यों नहीं आप ओसामा बिन लादेन से
मेरी मुलाकात का इंतजाम कर देते और अगर वे कहते हैं कि आप उनकी रक्षा कर रहे हैं तो
पूरा विश्व सच्चाई को जान जाएगा और मैं भी लिखूंगा कि आप लोग अमरीकी लोगों के लिए
काम नहीं कर रहे हैं. ”
मुल्ला उमर जमीन पर बैठे थे, मेरी बात सुनते ही वो खुशी से उठ खड़े हुए और बच्चों
के जैसे तालियां बजाईं और जलालाबाद में मौलवी यूनुस खालिस से संपर्क करके मेरी
मुलाकात ओसामा बिन लादेन से कराने की व्यवस्था करने के निर्देश दिये.
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फरवरी 1997 में, एक तालिबानी प्रतिनिधिमंडल शुगरलैंड, टेक्सास स्थित यूनीलोकल
कार्पोरेशन के मुख्यालय पहुँचा था, जहां उन्हें काफी अच्छा कार्पोरेट स्वागत सत्कार
मिला. मैंने फिर से अफगानी अधिकारियों को कंधार में संपर्क किया और पूछा – “जब
अमरीकियों से उनके रिश्ते अभी भी मजबूत हो रहे हैं, तो क्यो वे इन आरोपों से इनकार
कर सकते हैं कि वे अमरीकी एजेंडे का हिस्सा नहीं है”
उनके उत्तर ने मुझे अल कायदा के अधिकारियों के अंदर धीरे धीरे बढ़ते मतभेदों के
समझने के लिए पहली बार मजबूर किया. कई तालिबानी नेताओं ने मुल्ला घौस की उनके
अमरीकी रिश्तों के लिए खुलेआम आलोचना की. मार्च 1997 में इस्लामाबाद में कई अरबों
और अफगानों ने मुझसे संपर्क किया और बताया कि मैं जल्द ही उनके “शेख” से मिलूंगा और
उन्होंने मुझे चुप रहने की हिदायत दी. मैंने गौर किया कि उनके कुछ पाकिस्तानी
सहयोगियों ने मेरी दैनिक गतिविधियों पर नज़र रखना शुरु कर दिया है. कई दिनों की इन
जासूसी गतिविधियों के बाद एक रात को वे इस्लामाबाद में मैलोडी मार्केट स्थित मेरे
ऑफिस में आए और मुझे उनके साथ अगली सुबह जाने को तैयार होने को कहा.
लादेन के साथ गुफा में एक रात
मैं
अगले दिन शाम को अफगानिस्तान के जलालाबाद पहुँचा और पहली बार ओसामा बिन लादेन से
मिला. मैंने अपनी पहली रात उनकी गुफा में गुजारी और अगले ही दिन, जब वे मुझे
अफगानिस्तान, पाकिस्तान, इरान और चीन के अमरीकी साम्राज्यवाद के खिलाफ प्रस्तावित
भव्य गठबंधन के बारे में अपने साक्षात्कार में बता रहे थे तो मैं पूरी तरह से
भ्रमित हो गया था. मैं सोच रहा था कि अगर तालिबान एक अमरीकी एजेंडे का क्रियान्वन
कर रहा है तो क्यों ये व्यक्ति अमरीका को एक “दुष्ट” कह रहा है ?
अगर पाकिस्तान, अफगानिस्तान में मौजूद ईरानी प्रभाव को कम करने के लिए तालिबान का
समर्थन कर रहा है तो क्यों तालिबान का ये खतरनाक मेहमान अमरीका के विरुद्घ ऐसा
गठबंधन प्रस्तावित कर रहा है जिसमें ईरान भी शामिल है ? अगर अमरीकियों को मालूम है
कि तालिबानी सेनाएं ओसामा की रक्षा कर रहीं हैं, तो वे क्यों उनका समर्थन कर रहे
हैं ? कौन किसका इस्तेमाल कर रहा है ? कोई इस बात से इंकार नहीं कर सकता कि अमरीकी
प्रशासन ने तालिबान के उत्थान को नज़रअंदाज किया और उनका संरक्षण अमरीकी तेल
जरूरतों को ध्यान में रखकर किया.
9/11 हमलों के बस कुछ हफ्तों पहले, अमरीकी सचिव क्रिस्टिना रोक्का जुलाई 2001 में
तालिबानी अधिकारियों से इस्लामाबाद में मिलीं. उन्होंने तालिबान के लिए 43 मिलियन
डॉलर की खाद्य और आश्रय की मदद की घोषणा की. जब क्रिस्टिना रोक्का ने इस मदद की
घोषणा की, मैंने अपने कई अमरीकी दोस्तों से पूछा– “ क्यों अमरीका मुल्ला उमर और
ओसामा बिन लादेन के बीच मजबूत रिश्तों को समझ नहीं पा रहा है ?” मुझे उनमें से किसी
से कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिल पाया.
अल कायदा के परमाणु इरादे
मुझे अल कायदा के परमाणु इरादों के बारे में मई 1998 में तब पता चला जब मैं फिर से
अफगानिस्तान गया और मैंने अल कायदा के अधिकारियों में एक यूक्रेनियन साइंटिस्ट को
देखा. मैंने कंधार में भी ओसामा बिन लादेन के पास दो काले अमरीकी लोगों को भी देखा.
उस समय ओसामा बिन लादेन अपने परमाणु इरादों के बारे में बात करने को तैयार नहीं थे.
मैंने दो दिन उनके साथ गुजारे और उनसे एक सवाल को लेकर उलझ गया– कैसे वो इस्लामी
शरियतों और शिक्षा को मद्देनज़र रखते हुए वो अमरीकियों की हत्या को सही ठहराते हैं
क्योंकि इस्लाम के अनुसार गैर–मुसलिम का खून एक मुस्लिम के खून के ही बराबर होता
है.
उनके साथ मेरी पहली मुलाकात बहुत लंबी थी. जो एक गरमागरम बहस में तब्दील हो गई और
आखिरकर मैंने उन्हें बताया कि मैं इन सारी बातों को एक अखबार के साक्षात्कार में
संक्षेप में नहीं लिख सकता और मुझे इसके लिए एक किताब ही लिखनी पड़ेगी.
अमरीका अपने लाभ के लिए खेल रहा था
खेल ...., पढ़ें अगले सप्ताह