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आयोडीन नमक का जहर यानी थायरायड?
बहस
आयोडीन नमक का जहर यानी थायरायड?
जे के कर
बिलासपुर छत्तीसगढ़ से
इसी साल जनवरी की एक दोपहर मैं भोजन करने के बाद धूप का आनंद ले रहा था. तभी
मुझे थायरो केयर बिलासपुर से मेरी ब्लड रिपोर्ट मिली. मेरे शरीर में थायरायड
इस्टुमुलेटिंग हार्मोन (टीएसएच) की मात्रा सामान्य से अधिक थी. सामान्य रूप से इसे
0.30-5.5 के बीच होना चाहिए, जबकि मेरे रक्त में इसकी मात्रा 6.86 पाई गई. यह तय था
कि अब मुझे भी हाईपो थायराडिस की दवा लेनी पड़ेगी. शाम को जब मैं अपनी पारिवारिक
फीजिशियन डा.सरोज तिवारी से मिला, तो उन्होंने मुझे प्रतिदिन थाइरोक्स-50
(THYROX-50) की एक गोली सुबह खाली पेट में लेने की सलाह दी.
अपने परिवार के कुछ सदस्यों के थायराडिसम से ग्रस्त होने के कारण मैं जानता हूं कि
इस बीमारी के कारण थकावट, ठंड लगना, ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, कमजोर याददाशत,
वजन का बढ़ना, कर्कश स्वर, रक्तचाप का बढ़ना जैसे तकलीफें होती हैं. इस बीमारी में
शरीर में सूजन, ह्रदय की धड़कन का कम होना तथा मुंह की सूजन भी होती है, इसे केवल
दवा (levothyroxine) से ही नियंत्रण में रखा जा सकता है, जो जीवनपर्यंत लेनी पड़ती
है.
अपने खून की जांच के बाद मैंने अपने परिचित सुनील तिवारी से संपर्क किया. सुनील एक
भारतीय दवा कंपनी मैक्लायड में छत्तीसगढ़ के दवा प्रतिनिधि हैं तथा थाइरोक्स इसी दवा
कंपनी का उत्पाद है. सुनील ने मुझे बताया कि जब वह 2005 में पहली बार बिलासपुर शहर
में आया था, तब औसतन प्रतिमाह बीस हजार रुपये की थाइरोक्स बिक जाती थी, जो अब औसतन
प्रतिमाह एक लाख सत्तर हजार रुपये की बिक जाती है. यानी पिछले सात वर्षों में इसकी
बिक्री आश्चर्यजनक रूप से बढ़ी है. उसका कहना है कि आजकल लोगों में बीमारी के प्रति
जागरुकता बढ़ी है और अब बिलासपुर शहर में ही थाइराइड के टेस्ट हो जाते हैं. हालांकि
इस बीमारी के बढ़ने की वजह सुनील नहीं बता सका.
इसके बाद मैंने एक पैथोलॉजी लैब में कार्यरत बंटी ऊर्फ तेज साहू से मुलाकात की. बंटी
हमारे पारिवारिक फीजिशियन के यहां मरीजों से अपने पैथोलैब के लिए सैंपल एकत्र करता
है. बंटी ने बताया कि आज से 10 साल पहले तक महीने में दो या तीन हाइपो थायराडिसम के
मरीज मिलते थे, जबकि अब हर महीने 10 से ज्यादा मरीज मिलते हैं.
थायरोकेयर मुंबई की प्रतिष्ठित पैथोलैब है, जहां भारत में सबसे अधिक थायराइड
हार्मोन का परीक्षण किया जाता है. बिलासपुर में थायरोकेयर के संचालक शेख असलम के
अनुसार 2004 में जब उन्होंने अपना सैंपल कलेक्शन सेंटर स्थापित किया, तो उस वक्त
जितने सैंपल लिए जाते थे, उसमें से 20 प्रतिशत नमूनों में हाइपो थायराडिसम निकलता
था, लेकिन आज जितने नमूने लिए जाते हैं, उनमें कम से कम 80 फीसदी हाइपो थायराडिसम
के मामले सामने आ रहे हैं. असलम कहते हैं, “बिलासपुर जैसे शहर में डायबिटीज और हाइपो
थायराडिसम महामारी का रूप लेते जा रहे हैं.''
नगर के प्रतिष्ठित फीजिशियन डॉक्टर संदीप गुप्ता बताते हैं कि वे पिछले 25 सालों से
बिलासपुर में प्रैक्टिस कर रहे हैं. पहले महीने में कभी-कभार ही हाइपो थायराडिसम के
एक-दो मरीज मिलते थे. लेकिन अब हालत ये हैं कि हर महीने 10 नए मरीज सामने आते हैं.
बिलासपुर के सर्वाधिक व्यस्त सदर बाजार के इलाके में स्थित परवेज मेडिकल के संचालक
के आंकड़े भी मिलते जुलते हैं. वे बड़ी साफगोई से बताते हैं, “दस साल पहले तक उनके
यहां औसतन महीने में हाइपो थायराडिसम का कोई एकाध मरीज दवाई के लिए यहां आता था,
लेकिन आज हर रोज हाइपो थायराडिसम की दवा लेने वाले मरीज हमारे यहां आता हैं. हमारी
बातचीत के बीच ही एक अधेड़ महिला एल्ट्रोक्सिन(ELTROXIN) की खाली शीशी लेकर आ गई.
उसे हाइपो थायराडिसम की यह दवा चाहिए थी.
महिलाओं में जिस तेजी के साथ हाइपो थायराडिसम फैला है, यह उसका एक नमूना था. शहर की
स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर सुपर्णा मित्रा 2003 में यहां आई थीं और तोरवा इलाके
में उनका नर्सिंग होम है. डॉक्टर मित्रा बताती हैं, 'पहले यदा-कदा ही इस मर्ज से
ग्रस्त लोग आते थे. लेकिन अब हालत ये है कि मेरे पास आने वाले कई मरीज पहले से ही
एल्ट्रोक्सिन या थाइरोक्स ले रहे होते हैं. मैं प्रत्येक गर्भवती तथा रक्त अल्पता
के मरीज को टीएसएच
परीक्षण की सलाह देती हूं और टीएसएच बढ़े होने की स्थिति में, मैं उन्हें फीजिशियन
के पास भेज देती हूं. आजकल हाइपो थायराडिसम के आंकड़े में बेतहाशा वृद्धि हुई है,
लेकिन मैं आपको उनसे संबंधित आंकड़े नहीं दे सकती.'
शहर के सदर बाजार इलाके में जगत मेडिकल हॉल के संचालक अनूप छाबड़ा बताते हैं कि
पिछले कुछ सालों में हाइपो थायराडिसम की दवाओं के कई नए ब्रांड बाजार में आ गए हैं.
वे बताते हैं, पहले एल्ट्रोक्सिन या थाइरोक्स जैसी दवाएं ही यहां चलन में थीं.
लेकिन अब थाइरोनोर्म (THYRONORM) भी बाज़ार में उपलब्ध है. अब तो ल्यूपिन (LUPIN)
और इन्टास (INTAS) भी प्रतिस्पर्धा में उतर गई हैं. वे कहते हैं, “इतने ब्रांडों का
बाज़ार में
आना बताता है कि यह बीमारी तेजी से पैर पसारती जा रही है.” छत्तीसगढ़ के बिलासपुर
जिले की कुल आबादी 1991 में 16,94,883 थी, जो 2001 की जनगणना में 18 प्रतिशत बढ़कर
19,98,353 हो गई. इसके बाद 2011 की जनगणना में 26,62,077 हो गई. यानी पिछले दस सालों
में वृद्धि दर 33 प्रतिशत रही.
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अब जरा दवाओं से जुड़े आंकड़े में हुई वृद्धि दर पर गौर करें. मैक्लायड नामक जो कंपनी
थाइरोक्स दवा बनाती है, उसके स्थानीय प्रतिनिधि सुनील तिवारी के अनुसार पिछले सात
सालों में दवा की बिक्री 20,000 से बढ़कर 1,70,000 रुपये प्रतिमाह हो गई है. यानी
पिछले सात सालों में अकेले थोरोक्स दवा की बिक्री 750 प्रतिशत बढ़ी है. जनसंख्या
में 33 फीसदी की बढ़ोत्तरी के मुकाबले हाइपो थायराडिसम की अकेली थाइरोक्स दवा की
बिक्री 750 फीसदी तक बढ़ना, इस बीमारी की भयावहता को बताने के लिये पर्याप्त है.
परवेज मेडिकल के आंकड़े बताते हैं कि हाइपो थायराडिसम के मरीज 25 गुणा बढ़े हैं, जो
जनसंख्या की तुलना में 2400 प्रतिशत हैं.
इसी तरह पैथोलैब में कार्यरत बंटी के आंकड़े बताते हैं कि 10 साल पहले हर माह हाइपो
थायराडिसम के 2-3 मामले सामने आते थे, अब यह संख्या 10 तक पहुंच गई है. बिलासपुर
शहर की जनसंख्या 2001 में 4,86,694 थी और 2011 में यह 39.4 प्रतिशत बढ़ कर 6,78,822
हो गई. इसके मुकाबले हाइपो थायराडिसम के मरीजों का आंकड़ा 233 प्रतिशत से 400
प्रतिशत तक बढ़ गया है.
थायरोकेयर के संचालक के अनुसार 2004 में रक्त के नमूनों में से 20 प्रतिशत हाइपो
थायराडिसम के मामले मिलते थे, अब यह आंकड़ा 80 फीसदी पहुंच गया है. शहर की जनसंख्या
में 39 प्रतिशत की बढ़ोतरी की तुलना में यह बढ़ोत्तरी 300 प्रतिशत है. डॉक्टर संदीप
गुप्ता के अनुसार 1987 में, महीने में हाइपो थायराडिसम के एक-दो मरीज मिलते थे, जो
अब 10 के आंकड़े तक पहुंच गया है. यहां भी जनसंख्या की तुलना में मरीजों की बढ़ोतरी
400 से 900 प्रतिशत तक है. डॉक्टर संदीप गुप्ता के आंकड़े इस मामले में सर्वेक्षण
के लिहाज से बेहतर हैं कि वे शुरुआती दिनों से ही हर दिन केवल 30 मरीजों का ही
उपचार करते हैं.
लेकिन मामला केवल बिलासपुर के आंकड़ों का ही नहीं है. 1 नवंबर, 2011 को टाइम्स ऑफ
इंडिया में डॉक्टर रमन राव का शोध आलेख बताता है कि भारतीय ग्राम पंचायतों में यह
बीमारी चौगुनी हो गई है. 20-40 वर्ष की महिलाओं में इसके मामले अधिक सामने आए हैं.
कर्नाटक इंस्टीट्यूट ऑफ डाएबेटोलॉजी के निदेशक डॉक्टर नरसिम्हा सेठी के अनुसार हम
यह नहीं कह सकते कि यह बढ़ोतरी इसलिए हो रही है, क्योंकि लोगों में जागरुकता बढ़ी
है. बल्कि हाइपो थायराडिसम का मर्ज बढ़ता गया है. डीएनए की 1 फरवरी, 2012 की एक
रिपोर्ट बताती है कि भारत में हाइपो थायराइड के लगभग चार करोड़ मरीज हैं और इनमें
भी 60 प्रतिशत महिलाएं हैं.
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली की 2009-10 की वार्षिक रिपोर्ट के
अनुसार इंडोक्राइन विभाग में मधुमेह के 9,670 परीक्षण किए गए, वहीं 25,839 मरीजों
में से 11,287 मरीजों के टीएसएच के टेस्ट किए गए. एक साल पहले यानी 2008-09 में
बाह्य चिकित्सा कक्ष में 31,916 मरीज आए, जिनमें से 9,998 के मधुमेह का परीक्षण किया
गया और टीएसएच टेस्ट किए जाने वाले मरीजों की संख्या 11,161 थी. 2008-09 की तुलना
में 2009-10 में आने वाले मरीजों की संख्या कम होने के बाद भी तुलनात्मक रूप से 34
प्रतिशत के मुकाबले 43 प्रतिशत मरीजों का टीएसएच परीक्षण करवाने की जरूरत महसूस की
गई, जो नौ प्रतिशत अधिक है.
अब इस आंकड़े को थोड़ा और विस्तारित करते हैं. भारत की जनसंख्या 2001 में 102 करोड़
थी, जो 2011 में 17 प्रतिशत बढ़ कर 121 करोड़ हो गई. 10 वर्षों में जनसंख्या में 17
प्रतिशत की बढ़ोतरी के मुकाबले एक साल में ही एम्स में नौ प्रतिशत टीएसएच परीक्षण
अपनी कहानी खुद कह देता है. हमने आंकड़ों को लेकर थायरोकेयर के मुख्यालय से संपर्क
किया, लेकिन उन्होंने आंकड़े उपलब्ध कराने में अपनी असमर्थता व्यक्त कर दी.
लेकिन दुनिया भर में होने वाले शोध बताते हैं कि कहीं कुछ है, जो असामान्य रूप से
हाइपो थायराडिसम के लिए जिम्मेवार है. चीन में किया गया एक अध्ययन दावा करता है कि
आवश्यकता से अधिक या अतिरिक्त आयोडिन की
मात्रा लेने से हाइपोथाइरोडिज्म और आटोइम्युन थाइरोडिटिज का शिकार हो सकते हैं. द
न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडीसीन में प्रकाशित लेख इफेक्ट ऑफ आयोडिन इनटेक ऑन
थायराइड डिसिस इन चाइना, चीन में किए गए एक लंबे अध्ययन के आधार पर तैयार किया गया
है.
यह लेख निष्कर्ष के तौर पर बताता है- ...हालांकि आयोडिन की कमी से होने वाली
बीमारियों को दूर करने के लिए आयोडीन की अतिरिक्त मात्रा दी जानी चाहिए, मगर यह
सुरक्षित स्तर तक होनी चाहिए. समुचित स्तर से अधिक (मूत्रोत्सर्जन में आयोडीन की
औसत मात्रा प्रति लीटर में 200 से 299 यूजी) या अत्याधिक (मूत्रोत्सर्जन में आयोडीन
की मात्रा प्रति लीटर में 300 यूजी से अधिक) होने को सुरक्षित नहीं माना जा सकता,
विशेष रूप से ऐसी आबादी में जिसमें आटोइम्यून थाइराइड बीमारियों की आशंका होती है
या जिनमें आयोडीन की कमी होती है. आयोडीन की अतिरिक्त खुराक से संबंधित कार्यक्रम
खास क्षेत्रों को ध्यान में रखकर तैयार किए जाने चाहिए. ऐसे क्षेत्रों में जहां
आयोडीन के सेवन की मात्रा पर्याप्त हो, वहां इस तरह के कार्यक्रम की जरूरत नहीं.
जिन क्षेत्रों में आयोडीन की कमी पाई जाती है, वहां की जरूरतों को ध्यान में रखकर
ही कार्यक्रम तैयार किए जाने चाहिए.
आगे पढ़ें द जर्नल ऑफ क्लिनिकल इंडोक्रायनोलॉजी एंड मेटोबोलिज्म में भी डेनमार्क का एक अध्ययन
प्रकाशित हुआ है- An Increased Incidence of Overt Hypothyroidism after Iodine
Fortification of Salt in Denmark: A Prospective Population Study. यह अध्ययन बताता
है कि आयोडीन युक्त नमक के कारण नौजवानों तथा अधेड़ों में प्रत्यक्ष हाइपो
थायराडिसम के मामले बढ़ गए हैं. अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लीनिकल न्यूट्रीशन में छपे एक
नए अध्ययन के अनुसार जब 400 माइक्रोग्राम की मात्रा का आयोडीन सप्लीमेंट दिया गया,
तो जिन पर शोध किया जा रहा था, उनमें उपचार के दौरान हाइपो थायराडिसम विकसित होने
लगा.
जाहिर है, हाइपो थायराडिसम के लिए आयोडीन युक्त नमक को दुनिया भर में जिम्मेवार माना
जा रहा है. 1983-84 से पहले लोग खड़ा नमक उपयोग में लाते थे, लेकिन इस दौर में
सरकार ने आयोडीन युक्त नमक के इस्तेमाल पर जोर डालना शुरू कर दिया. स्थिति यह हो गई
कि 1988 में बजाप्ता कानून बना कर बिना आयोडीन के नमक की बिक्री को गैरकानूनी घोषित
कर दिया गया. हालांकि सरकार खुद मानती रही कि भारत में केवल पहाड़ी इलाकों में
लोगों को आयोडीन की ज़रुरत है. शेष भारत में लोगों को साग-सब्जियों से ही आयोडीन
मिल जाता है. अंततः वर्ष 2000 में सरकार ने आयोडीन नमक की अनिवार्यता खत्म कर दी.
ये और बात है कि आज की तारीख में बिना आयोडीन का नमक बाजार में सहजता से उपलब्ध ही
नहीं है.
आयोडीन एक सूक्ष्म पोषक तत्व है, जो शरीर के लिए अत्यावश्यक है. इसकी कमी से
गर्भस्थ शिशु के शारीरिक एवं दिमागी विकास पर कुप्रभाव पड़ता है. आयोडीन की कमी से
घेंघा रोग होता है. यह आयोडीन अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग मात्रा में पाया जाता
है. यह हरी सब्जियों, साबूत अनाज, दूध एवं समुद्री खाद्य पदार्थों में प्राकृतिक
रूप से पाया जाता है. समुद्री नमक में भी आयोडीन पाया जाता है, जिसकी मात्रा 6-8
पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) होती है.
बाज़ार में पाए जाने वाले नमक, जैसे टाटा नमक में यह 20 पीपीएम होती है. सवाल यह
उठता है कि जब आयोडीन की कमी से हार्मोन का स्राव कम हो जाता है, इसलिए आयोडीन की
मात्रा बढ़ानी पड़ती है, तो क्या आयोडीन की अधिकता से अधिक हार्मोन का स्राव नहीं
हो सकता है ?
निश्चित तौर पर पूरी भारत के नागरिकों में आयोडीन की कमी एक समान नहीं है. ऐसे में
उन्हें अलग-अलग मात्रा वाले नमक की जरूरत हो सकती है. पूरे देश में सभी को एक ही
मात्रा का आयोडीनयुक्त नमक दिया जाना तर्कसंगत नहीं हो सकता है. यह गौर करने लायक
बात है कि पूरा भारत जलवायु की दृष्टिकोण से सात भागों में बंटा हुआ है, इसी तरह
यहां की जनसंख्या भी अनुवांशिक विविधता वाली है. जाहिर है,ऐसे में सभी के लिए एक ही
मात्रा का आयोडीन किस तरह उपयोगी होगा?
शरीर में आयोडीन की मात्रा को मूत्र परीक्षण से नापा जा सकता है. प्रति लीटर 100
एमसीजी की मात्रा को सामान्य माना जाता है. लेकिन 50-90 एमसीजी की मात्रा को कम
अल्पता, 20-48 एमसीजी की मात्रा को मध्यम अल्पता और 20 एमसीजी प्रति लीटर से कम की
मात्रा को तीव्र अल्पता वाला माना जाता है. इसी तरह अगर मूत्र में आयोडीन की मात्रा
200-299 एमसीजी हो तो इसे आवश्यकता से अधिक माना जाता है. 299 एमसीजी से अधिक की
मात्रा को आयोडीन की अधिकता कहा जाता है.
जब हम पूरे देश में एक ही तरह की आयोडीन की मात्रा वाले नमक का उपयोग कर रहे हैं,
तो सहज ही यह सवाल उठता है कि क्या भारत सरकार ने कभी किसी तरह के परीक्षण के जरिये
यह पता लगाने की कोशिश की कि देश के किस इलाके में लोगों को कितनी मात्रा में
आयोडीन की जरूरत है? जाहिर है, इसका जवाब नहीं में है.
संसद की स्थायी समिति ने मई 2012 में पेश अपनी 59वें रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा
है कि भारत में इंडो-आर्यन, द्रविड़, मंगोल तथा आदिवासी मानव जाति पाई जाती हैं. जब
भी भारत में किसी भी तरह की औषधि को बेचने की
अनुमति दी जाए, तो उससे पहले उस औषधि के तीसरे चरण का क्लिनिकल ट्रायल्स भारत में
कराना आवश्यक है, जिससे भारतीयों को कौन सी दवा, कितनी मात्रा में दी जानी आवश्यक
है, यह सुनिश्चित हो सके. यह कानूनन भी आवश्यक है.
उदाहरण के लिए कोलेस्ट्राल कम करने की दवा रोसुवास्टेटिन (ROSUVASTATIN) की मात्रा
यूरोपीय तथा उत्तर अमेरिकी आबादी की तुलना में भारतीयों को कम मात्रा में दी जाती
है. यदि विदेशों के समान मात्रा में ही ROSUVASTATIN की मात्रा भारतीयों को दे दी
जाए, तो उसके प्रतिकूल परिणाम सामने आएंगे.
लब्बोलुआब ये कि जब दवाओं का परीक्षण अनिवार्य है, तो फिर आयोडीन युक्त नमक के
परीक्षण को लेकर सरकार इतनी उदासीन कैसे है ? इसका तर्क यह दिया जा सकता है कि
आयोडीन पोषक तत्व है, दवा नहीं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यह भी सही नहीं है कि
आयोडीन युक्त नमक दिए जाने के पीछे का तर्क यही है कि घेंघा रोग से बचा जा सके और
गर्भस्थ शिशुओं का सही रूप से विकास हो सके.
अब जबकि दुनिया के दूसरे देश हाइपो थायराडिसम के लिए आयोडीन की अधिकता को जिम्मेवार
मान रहे हैं, तब यह जरूरी है कि भारत में तत्काल आयोडीन युक्त नमक को लेकर परीक्षण
किए जाएं और इसकी पूरी जांच हो. राज्य सरकार की भी यह भूमिका हो सकती है कि वह जन
सुरक्षा को सुनिश्चित करे और व्यापारियों के मुनाफे के लिए अनाप-शनाप कीमत वाले
आयोडीन से लदे-फदे नमक पर प्रतिबंध लगाए.
© J K KAR
joykar@raviwar.com
25.09.2012, 19.58 (GMT+05:30) पर प्रकाशित
Pages:
| इस समाचार / लेख पर पाठकों की प्रतिक्रियाएँ | | | ravg jangra [] kurksatera - 2016-10-19 18:01:46 | | |
बैन पाक कलाकार बैन पाक कलाकार बैन पाक कलाकार करे लेकिन करन और पैसा लगाने वालो को नूकसान का मूआवजा सरकार या m n s दे
ना मिले तो zee zindgi को भी बे करे
m n s बिजेपी के राजयभा के Dr. Subash caindra का और b j p के सभी Businessman दोस्तो का भी वीरोध जो पाक नाटक व पाक के साथ अभी तक Business कर रहे ह | | | | | | ashok [ashokktiwari@yahoo.com] bhopal - 2014-09-24 12:32:34 | | |
हवा और पानी की तरह नमक इंसान की मूलभूत आवश्यकता है | सिर्फ आयोडीन युक्त नमक बेचने का कोई कानून नहीं है ये सिर्फ एक सरकारी आदेश के तहत किया जा रहा है , उक्त आदेश को सरकार कभी भी निरस्त कर सकती है . भारत से जादा गोइटर की समस्या विश्व के अनेक देशों में हैं , जिन देशों में goitre रोग भारत से जादा है वहां भी सिर्फ आयोडीन युक्त नमक का कोई कानून या आदेश नहीं .
७० पैसे किलो का नमक १७ रूपये में बेचा जा रहा है इससे १०००० करोड़ का अतिरिक्त मुनाफा होता है | यह मुनाफा किन लोगों की जेबों में जा रहा है ?
नमक में आयोडीन मिलाने के लिए पोटेशियम आयोडाइन मिलाना चाहिए जबकि भारत में सस्ता पोटेशियम आयोडेट मिलाते हैं , इसकी लाइफ कुछ दिनों की होती है , यह कपूर की तरह वोलेटाइल होता है | अर्थात फैक्ट्री से नमक का पैकेट हमारे घर आते आते पोटेशियम आयोडेट उड़ जाता है . | | | | | | rakesh [] jabalpur - 2012-10-20 17:09:05 | | |
मुझे लगता है लेखक को जान का खतरा हो सकता है क्योंकि हम अपने देश में अपनी मरजी से सांस नहीं ले सकते और न दर्द किसी को बता सकते हैं क्योंकि सभी बिके हुए हैं. प्रधानमंत्री और सरकार भी खरीददार हैं कंपनियां जिनके आगे कोई नहीं.
| | | | | | mayakaul [kaul3maya@gmail.com] Bpopal M.P. - 2012-10-14 14:44:07 | | |
अभी भी जाग जाओ देशवासियों उपवास वाला नमक यानी सेंधा नमक उपयोग में लाएं. ये धीमा जहर हम सबको पीढ़ियों तक बीमार कर देगा. | | | | | | kusum [] ghaziabad - 2012-10-07 03:29:32 | | |
बाजारवाद का घिनौना सच है ये. | | | | | | N.K.Verma [nkvnewdelhi@yahoo.co.in] Churu (Rajasthan) - 2012-10-05 12:10:10 | | |
लेख बहुत ही जगानेवाला है लेकिन सरकार और जनता जागे तब ना. जनता को बिना आयोडीन वाला नमक बाजार में मिलता ही नहीं बहुत कोशिश करने पर ही मिलता है क्या करे जनता सरकार को रोए या डॉक्टर को. बेचारी जनता. | | | | | | अमृत खरे [] लखनऊ ,उत्तर -प्रदेश - 2012-10-02 04:17:30 | | |
लेख तथ्यपरक है|आयोडीन-युक्त नमक कि अंधाधुन्द बिक्री और सेवन से थाइरोइड कि बीमारी ने महामारी का रूप ले लिया है|लेख में बीमार हो गए लोगों के लिए सलाह भी दी जानी चाहिए थी|आखिर अब लोग क्या करें? | | | | | | DR. Vijay [] Bilaspur, C.G. - 2012-10-02 02:13:59 | | |
This is really a issue for concern. The writer has convinced me that use of iodized salt indiscriminately can cause problems. There should be available in the market both `iodized` and plain salt for use. Compulsory use of iodized salt should be discontinued. If possible there should be screening for people who NEED iodized salt. | | | | | | balbir singh [balbir.deys@gmail.com] mobile - 2012-10-01 08:12:32 | | |
well written statement. | | | | | | surya [] chicago,USA - 2012-10-01 05:20:13 | | |
Good Job JK. Hope we all awake and make goverment and people act rapiodly and responsibly. can Amir take these issue on Satyamev Jayate. | | | | | | वीजय झा [] दिल्ली - 2012-09-28 06:05:14 | | |
बहुत ही सुंदर आलेख. थायराइड पर इतना सुंदर विश्लेषण पहली बार देखा ! और मेरा तो मानना है आयोडीन नमक एक बड़ा घोटाला है जो व्यापारिक लाभ के लिए जनता पर जबरदस्ती थोपा गया है , और सेहत को बर्बाद कर रहा है ! | | | | | | Rajiv [pikkybabu@gmail.com] Giridih, Jharkhand - 2012-09-25 18:36:53 | | |
पूरे लेख में आयोडीन की अधिकता को हायपो थायरोडिज्म कहा गया है, प्रश्न उठता है कि क्या आयोडीन की कमी को क्या हायपर थायरोडिज्म कहेंगे ? कर जी कृपया इसे स्पष्ट करें. | | | | | | योगेंद्र शांडिल्य [yogendrashandilya@gmail.com] बिलासपुर - 2012-09-25 16:09:27 | | |
बहुत ही विस्तृत और जागरूक करने वाला लेख है ....कब तक आम हिदुस्तानी एक चूहे या गिन्नी पिग की तरह केवल प्रयोग करने के लिए एक वस्तु बनकर रह जाएगा ...क्या उसे जीने का अधिकार नहीं है ....? | | | | |
सभी प्रतिक्रियाएँ पढ़ें |
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